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अनुभूतियां

मानव अनुभूतियों के अपने विचित्र समागम होते है। कोई भी अनुभूति स्वभाव में हमेशा के लिए नही रहती। उसका जैवरासायनिक अस्तित्व मनुष्य के रक्त में स्त्रावित सम्बंधित हार्मोन के अस्तित्व पर ही निर्भर करता है। अर्थात हम किसी खास किस्म के अनुभव को तब तक ही महसूस करते है जब तक कि वो सम्बंधित हार्मोन हमारे रक्त में असरदार रहे। मनुष्यों में अनुभूतियों को सामान्य करने की शानदार अनुकूलता पायी जाती है अर्थात आप पीड़ा व आनंद को एक स्तर के बाद उसी मात्रा में उतने ही वेग से महसूस करना  बंद कर देते है। यही वजह है कि लोग वज्र पीडाओं को जेलकर भी जी जाते है। रोने को किसी के पास समुद्र नही होता। सुख के साथ भी ऐसा ही है खूब हासिल कर लेने के बाद भी आप ऊब जाते है क्योंकि अब आपको यह सफलताएं और तारीफें रोमांचित नही करती जितनी कि पहले करती थी अब रोमांचित करने के लिए कुछ और बड़ा चाहिए फिर उससे भी बड़ा। लाखो की लॉटरी लगने की खुशी का उछाल उतना ही जल्दी सामान्य हो जाता है जितना जल्दी  बिजिनेस में दिवालिया होने के दुःख की खाई पटती है। हर किसी की अनुभूति का एक स्तर होता है इसलिए जिस विचार या दृश्य पर शायद आपको आश्चर्य

मार्को पोलो

मार्को पोलो 13 वी सदी के उत्तरार्द्ध में एशिया घूम के आया था। उसने अपने जेल के साथी को बताया था कि हिंदुस्तान पूर्व में स्थित है। यूरोप के लिए दो सदियों तक एशिया को जानने का एकमात्र जरिया मार्को द्वारा लिखी किताब "the book of sir marko" रही। तब पूर्व को लेकर यूरोप में बहुत सी भ्रांतियां प्रचलित थी। जैसे सोने की नदियां बहने व जॉन नामक पूर्वी ईसाई राजा जिसके पास अकूत सोना था। 15 वी सदी के मध्य तक तुर्को ने कस्तून्तुनिया पर अधिकार कर लिया था और यूरोप का पूर्वी दुनिया से होने वाला स्थलमार्ग व्यापार पूरी तरह से या तो बन्द हो चुका था या तुर्को के रहमोकरम पर निर्भर। वेनिस के बाजारों में चीजो के दाम आसमान छूने लगे थे। पूर्व से चीजो का आवागमन बन्द होना यूरोप की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ने जैसा था।  ग़रीबी और दरिद्रता के साथ आये प्लेग ने  यूरोप के आर्थिक बौनेपन को और कमजोर कर दिया। यह वो समय था जब भारत, चीन और फारस की GDP पूरी दुनिया की GDP का 80% थी और एशिया को लगता था कि दुनिया उनके चक्कर लगाती है। लेकिन स्थितियां बहुत तेजी से बदल रही थी। स्थापित साम्राज्य कमजोर पड़ रहे थे और नई शक्तिय

टैरियन लेनिस्टर

बहुत प्रचलित और लोकप्रिय टीवी सीरीज "Game  Of Throne" की कहानी के किरदारों  की अपनी कई कहानियां है। उनमें लेनिस्टर घराने के छोटे बेटे और कद से बौने  " टाइरियन लेनिस्टर" वो किरदार है जो दुनिया को देखने और घटनाओं के घटित होने के वजूद पर एक अलग नजरिया रखता है। टाइरियन कहता है कि 'उसे दो ही काम बखूबी आते है एक पीना और दूसरा जानना।' और यही उसके जीने और जीने के लिए बचे रहने का राज है।  जिन्होंने "टाइरियन"  की कहानी को देखा होगा उन्हें पता है कि वो अंत तक इसीलिए बचे रहे पाते है क्योंकि वो जानते है, हर तरह के लोगो और हर तरह की घटनाओं के घटित होने के कारणों के बारे में । और उन सब पर बोलते रहने की वजह से। यही वजह है कि वो अपनी परिस्थितियों को समझने  और जानने के हुनर के बूते चार दफा अपनी मौत से भी बच निकलते है और पियक्कड़ बौने से 'डनेरियस टार्गेरियन' के मुख्य सलाहकार बनते है । टाइरियन लेनिस्टर-  के व्यक्तित्व  की तीन खूबियां है। 1. स्थितियों का अवलोकन 2. लोगो की इच्छाओं को अपनी महत्वकांक्षाओं से जोड़ना 3. लोगों को सुनना और उनकी कहानियां जानना। वो समझने

रात की गहरी घड़ियां

रात की गहरी घड़ियों में धरती सांस लेती है। किसी ने सुना है उसके सीने से आती सांसों की आवाजों को वो जख्म सीती है अपने रात भर ताकि नई जख्मो के लिए तैयार हो सके नई सुबह

बेवक्त सब जिते है।

वक्त के साथ कोई नही ज़िता, बेवक्त सब जिते है। ख्याल सवा उम्र तक जिते है , रिश्ते पूण तक छलावे जिंदगी भर जी जाते है, और साये रात तक वफ़ादारियाँ कीमतों से ज़िती है और भरोसे धोखे तक मोहब्बत किस्सों में जिवित है और बगावतें इतिहासो में पाप ताउम्र जी जाते है,पुण्य कभी नही जिते आख़िर वक्त के साथ कोई नही जिता, बेवक्त सब जिते है।

सेपियंस

'युवाल नोआ हरारी'  की किताब  "सेपियंस"  में मनुष्य की साझी कल्पना के बारे में बताया गया है की कैसे कुछ मिथकों में साझा विश्वास करने की वजह से लाखों अपरिचित मनुष्य भी एक साथ सहयोग करने के लिए  तैयार हो जाते है। सियासत, मजहब , राष्ट्र और पैसे कुछ और नही हमारी साझी कल्पनाओं के उत्पाद है। सहयोग करने के लिए यह जरूरी है कि हमारे लोक विश्वास साझे हो। और हमने यह किया। सहयोग की प्रबलता इसी बात पर निर्भर करती है कि लोग कितनी शिद्दत से उस मिथक में विश्वास करते है। यही वजह है कि वक्त के साथ कुछ मिथकों की प्रासंगिकता क्षीण होने लगती है और कुछ की अधिक मजबूत। उदाहरण के लिए जैसे-जैसे सभ्यताए और समाज तार्किक होते जाएंगे वैसे-वैसे मजहबी मिथकों की बुनियादें कमजोर होती जाएगी और वैज्ञानिक मिथक मजबूत होने लगेंगे। इन्हीं मिथकों की वजह से दुनिया कई समुदायों, देशों, पंथों व वर्गों में आसानी से अपने-अपने विश्वासों के साथ जी रही है। मिथकों ने दुनिया को सहयोग करने के लिए जोड़ा ; तो विभक्त भी किया । लोक-विश्वासों की विविधता और श्रेष्ठता के बोध ने इतिहासों को महायुद्धों व लम्बी लड़ाइयों से पाट रखा

आरम्भिक मनुष्य

मामूली घास के दानों के मोह में मनुष्य ने अपनी प्राकृतिक आज़ादी से खुशी-खुशी समझौता कर लिया था। पहले मैदानों में खेत बने फिर उनके इर्दगिर्द छोटी मानवीय बस्तियां, फिर सामूहिक सहयोग के लिए गांव जैसी संस्थाए जो निरंतर बढ़ती होई महानगरों में बदल गयी।  सामाजिक झुंडगपशप में इतना प्रमोद मनोरंजन था कि मनुष्य ने अपने जैनेटिक कोड को बदलकर पीढ़ियों को राजनीतिक, मजहबी , राष्ट्रीय झूठ बोलने और मिथक गढ़ने में सक्षम बनाया ।