संदेश

2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"You Start Dying Slowly "

# ब्राज़ील की कवयित्री 'Martha Medeiros' की कविता "You Start Dying slowly" सोशियल मिडिया पर विश्व कवि "पाब्लो नेरूदा"  के नाम से खुब शेयर की गई।  जो प्रेम और क्रांति के कवि  "पाब्लो नेरूदा" की प्रसिद्धि और ख्याती के आकर्षण से ही हुआ। पाब्लो के काव्य में कलमाय फूलों की उदासी और जीवन के प्रति खिलती कलियों सा आवेश है। यही कारण है की इस शानदार कविता को पाब्लो के स्तर की समझा गया और प्रसिद्ध किया गया। चिली कवि पाब्लो नेरूदा 1971 में साहित्य के नोबल पुरस्कार से सम्मानित है। अच्छी शराब और सताए हुए लोगों से प्यार करने वाले नेरूदा के जन्मदिन -12 जुलाई को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस कविता के वास्तविक रचनाकार  को गुमान हुआ होगा इस बात का ! लेटिन अमेरिका के Herald tribunal " ने बताया की इंटरनेट पर पूरी दुनिया के लोगों द्वारा पसंद की जाने वाली इस कविता के वास्तविक रचनाकार " पाब्लो नेरूदा" नही है। खैर जो भी हो काव्य रच देने के बाद ; रह किसी का जाता नही!  ,और  पसंद किए जाने की अपनी कसौटियों के साथ सदियों यात्रा करता रहता है। जैस

You Star Dying Slowly..!

# पाब्लो नेरुदा -12 July सही मायने में जनकवि शायद वही होता है जो प्यार को क्रांति और क्रांति को प्यार मानता है, उन्हें अलग नहीं बल्कि एक ही नदी की दो लहरों की तरह देखता है- जो बहती है जन जन में. लातिन अमरीकी समाज ही नहीं बल्कि कविता से प्रेम करने वाले लाखों दिलों को यूंही सहलाती दुलारती गई है पाब्लो नेरुदा की कविता. चिली के मशहूर कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता पाब्लो नेरूदा ऐसे ही कवियों में से थे जो दुनिया की ख़ूबसूरती को अभिव्यक्ति का चोला पहना कर उसमें चार चाँद - 12 लगाते हैं. 12 जुलाई 1904 को जन्मे पाबलो नेरूदा की जन्मशती दुनिया के कई हिस्सों में मनाई जा रही है. दुनिया के चहेते कवि पाब्लो नेरूदा को श्रद्धाँजलि देने के लिए 12 जुलाई को विश्व कविता दिवस मनाया गया. इस महान कवि का पहला काव्य संग्रह 'ट्वेंटी लव पोयम्स एंड ए सॉंग ऑफ़ डिस्पेयर' बीस साल की उम्र में ही प्रकाशित हो गया था. पाब्लो नेरुदा ने लिखा है, मुझे प्यार है उस प्यार से जिसे बांटा जाए चुंबनों में, तलहटी पर और रोटी के साथ. प्यार जो शाश्वत हो सके और हो सके संक्षिप्त प्यार जो अपने को मुक्त करना चाहे फिर प्यार

अनकहें ज्जबात

जिन्दगी के बहुत से किस्सें इस तरह से लिखे होते है।  जिस तरह से नकल करने की चिट पर प्रश्नों के उत्तर लिखे होते है। जो हमें तो समझ में आते है पर पूरी दुनिया को नही। - हर उम्र अपने अनकहें किस्सों के पुलिंदें समेट कर अलग रखती है। इनमें वो जज्बात होते है जो किसी पर जाहिर होने वाले थे लेकिन वक्त और हालातों ने उन्हें जाहिर होने नही दिया। जैसे - उसे हंसतें हुए देख कर जो लगता है वो कैसा लगता है ? यह कोई किसी को कैसे बताए। यह ज्जबात किसी भी तरह से जाहिर नही हो सकते है। जैसे-  मुद्दतों तिनका तिनका जोड कर घरोंदा बनाने और उसके बन जाने की खुशी को वो परिंदा किस तरह से समझाएगा।  वो समझा ही नही पाएगा कि वो ऐसा कर के कितना गहरा गया है खुद में । ऐसे ही हजारों जज्बातों में जो जिन्दगी होती है वो ही जिन्दगी होती है। आखिर में उस गरीब के बच्चें के ज्जबात कैसे समझ पाओगे जिसे झण्डे पर नए जूतें मिलने वाले है वो अपनी खुशी को पूरी रात जाग कर सेलिब्रट तो करेगा लेकिन दर्ज नही! - ishwar

एक चिकू वाला,

आपने कभी सब्जी बेची है? नही बेची! आज से पहले मैंने भी नही बेची थी, पर आज कुछ देर के लिए ही सही मैं चिकू वाला बन गया। हुआ यूं की पढकर जब में अपने कमरे की तरफ लोट रहा था तो, सड़क के किनारे एक चिकूवाले ने बड़े बड़े चिकूओं का ढेर लगा रखा था, मुझे चिकू बहुत पसंद है। सोचा ! क्यों न चिकू खाए जाए? मैं चिकू की ठेले के पास गया तो वहाँ कोई नही था, मैंने सोचा चिकूवाला कही गया होगा, मुझे देखकर लोट आएगा, मैं अच्छे अच्छे चिकू छाँट कर चेले में डालने लगा, तभी एक पुरूष और महीला वहाँ आए और बोलो भैया चिकू क्या भाव दे रहे हो! वो मुझे चिकूवाला समझ रहे थे! मैंने सोचा क्या पता जिन्दगी में कभी चिकू बेचने वाला बनू या ना बनू पर क्यों न आज बन ही जाता हूँ। मैंने कहाँ छाँट लो बाबूजी, छाँट लो.. बहुत सस्ते है! वो दोनो चिकू देखने लगे, इधर-उधर कर थोडी देर बाद फिर बोले.. दोगे क्या भाव मैंने कहाँ देदेंगे बाबूजी भाव की क्या फिक्र करते हो आप देखो तो सही बहुत अच्छे चिकू है ऐसे चिकू आपको पूरी मंडी में नही मिलेंगे । मैं भाव कैसे बताता मुझे इनके भाव का कोई अंदाजा नही था। बहुत सारे चिकू छाँट कर महीला ने बोला यह लो तौल

एक सफल कहानी

- एक सफल कहानी- " किसी की लडाई में शामिल होने से मुश्किल है उसे अकेले लड़ते हुए देखना! उसे अकेले संघर्ष में  झुझते और गिरते हुए देखना उतना ही तकलीफ देता है जितना की लडने वाले को देता होगा!! पर जब वो अकेला लड कर जीतता है तो खुशी डबल से भी ज्यादा हो जाती है!! मोहन जी के संघर्ष के दिनों को मैंने, अमर ने और नियाज ने बहुत करीब से देखा है। वो जब अकेले पढते, और मुसीबतों से झुझते थे तो हम चाहकर भी उनकी लडाई में शामिल नही हो सकते थे! क्योंकि हम सब की लडाइयाँ अलग-अलग थी। जब नियाज जी का सलेक्श हुआ और पार्टी दी तो मोहन जी ने का " मैं भी सलेक्ट हो कर यही पर पार्टी दूंगा और यही पर तुम सब को मूवी दिखाउंगा " मैं और अमर वहाँ पर इंतजार करते रहे की कब मोहन जी सलेक्ट होंगे और कब पार्टी होगी? तीन - चार दिन के नम्बर से हमे मोहन जी का फोन आता था तो हम दोनों लाउडस्पीकर कर देते थे!  क्योंकि हमसे बात करने के बाद मोहन जी हम दोनों से एक ही बात बोलते थे कि " बताओ यारों मेरा सलेक्शन तो हो जायेगा ना ? और हम दोनों एक ही आवाज में एक साथ बोलते थे " मोहन जी आपका नम्बर तो सयोर है "