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बच्चों की हेण्डराइटिंग........!

  हेण्डराइटिंग को जैसे दो मुक्तलिफ़ इंसानों के हाथों  की लकीरें एक सी नही होती ! नही होते समान पैरों के निशान कही;  एक सा नही होता दुनिया मे बहुत कुछ  वैसे ही सबकी लिखावट भी कहाँ होती है समान...?  बच्चें कैसे लिखते है...? झुककर बहुत नजदीक जाकर या लिखते है अधलेटे होकर घुटनो को मोड़े हुए..? कुछ बहुत जोर लगाते है अक्षरों को उकेरने में ; तो कुछ बहुत हल्के फ़ारिक हाथ से लिखते है।  हेण्डराइटिंग से व्यक्तित्व जानने के विज्ञान को ग्राफोलॉजी कहा जाता है। ऐसी साइंस में अक्षरों की बनावट , उनके बीच अंतराल व दाब का अध्ययन कर यह बताया जाता है कि अमूक व्यक्ति में अमूक  भावना की तीव्रता कितनी है ।

बालिकाओं के हिस्से के दिन...!

बालिकाएं और उनके हिस्से के दिन........! महिला, बेटी और बालिका दिवस जैसे राष्ट्रीय और वैश्विक दिनों को मनाने से भला क्या फायदा रहा होगा ....! ऐसे दिवसों की उपयोगिता कितनी है और कितनी आगे रहेगी......? फिर दुनिया मे पुरुष दिवस क्यों नही है....? क्या उन्हें जागरूकता की जरूरत नही है...? क्या वो हमेशा ही शोषक के किरदार में ही रहा...? ऐसे तमाम गैरजरूरी सवाल बच्चों के लिये बेहद जरूरी हो जाते है। ऐसा क्या था कि दुनिया और समाज के प्रबंधन का काम पुरुषों के ही हाथों में रहा....? सभ्यताओं की धुरी रही स्त्री कब कमजोरी का प्रतीक बन गयी....? क्या पता ही नही चला था...? दुविधा तो यह थी कि बच्चें ऐसे समझने वाले नही थे। उनके लिए चीजें आसान करनी होती है। उन्हें सवालों के जवाब से पहले सवालों को समझना होता है...! वरना उन्हें यह बात भला क्यों बैचेन करने लगी कि किसानी का 70% मेहनत वाला काम उनकी माँ , जीजा या बाई करती है लेकिन फिर भी किसान केवल पापा, दादा या भाभा ही है...? अगर सवाल सही ना हो तो उनके लिए तो यह समाज की सामान्य व्यवस्था ही है। इसमें कौनसी भेदभाव वाली बात है.....? इसलिए उन्हें बताया गया कि दर