बालिकाओं के हिस्से के दिन...!

बालिकाएं और उनके हिस्से के दिन........!

महिला, बेटी और बालिका दिवस जैसे राष्ट्रीय और वैश्विक दिनों को मनाने से भला क्या फायदा रहा होगा ....! ऐसे दिवसों की उपयोगिता कितनी है और कितनी आगे रहेगी......?

फिर दुनिया मे पुरुष दिवस क्यों नही है....? क्या उन्हें जागरूकता की जरूरत नही है...? क्या वो हमेशा ही शोषक के किरदार में ही रहा...?
ऐसे तमाम गैरजरूरी सवाल बच्चों के लिये बेहद जरूरी हो जाते है।
ऐसा क्या था कि दुनिया और समाज के प्रबंधन का काम पुरुषों के ही हाथों में रहा....? सभ्यताओं की धुरी रही स्त्री कब कमजोरी का प्रतीक बन गयी....? क्या पता ही नही चला था...?

दुविधा तो यह थी कि बच्चें ऐसे समझने वाले नही थे। उनके लिए चीजें आसान करनी होती है। उन्हें सवालों के जवाब से पहले सवालों को समझना होता है...! वरना उन्हें यह बात भला क्यों बैचेन करने लगी कि किसानी का 70% मेहनत वाला काम उनकी माँ , जीजा या बाई करती है लेकिन फिर भी किसान केवल पापा, दादा या भाभा ही है...? अगर सवाल सही ना हो तो उनके लिए तो यह समाज की सामान्य व्यवस्था ही है। इसमें कौनसी भेदभाव वाली बात है.....?

इसलिए उन्हें बताया गया कि दरअसल समाज बाहर से पुरुषों द्वारा संचालित लगता है लेकिन हकीकत में यह महिलाओं और पुरुषों दोनों के द्वारा सुंदर बनाया जाता है। यह बात अलग है कि पुरुष महिलाओं को इसका क्रेडिट नही देते है वो हमेशा यह बताते है कि हम ही समाज के प्रबंधक है। अंदरूनी तौर पर यह दुनिया महिलाओं से ही आकर्षित और प्रभावित है। वही इसकी जननी और वास्तविक संचालिका है। पुरुष की विचारधारा के प्रवाह को आकार देने वाली!

बात तो फिर भी समझ मे नही आई....? अब क्या किया जाए...?

जटिल बातो को समझाने के लिए शिक्षण में भूमिका निर्वहन पद्धति ( जिसमे बच्चें स्वयं किरदार को अभिनय कर सीखते है )  का प्रयोग किया जा सकता है। हमने वही किया....!
आज विश्व बालिका दिवस ( 11 अक्टूबर ) के बारे में बच्चो को बताने के लिए भूमिका निर्वहन शिक्षण पद्धति से बेहतर और क्या हो सकता था...? तो school का सारा संचालन विद्यालय की होनहार बालिकाओं को सौप दिया गया...!
कक्षा आठ की बालिका को संस्था प्रधान और अन्य कक्षाओं की बालिकाओं को शिक्षक की भूमिका दी गयी...! बात पहलू के रोमांच की थी..! सब को उत्सुकता ने झकड़ा था..! रोज अपने साथ बैठने वाली लड़की आज पूरी school की हेडमास्टर है....🙄।
staff room और सभी क्लासेज उनके हवाले कर दी.....! नियमित रूपसे सभी शिक्षिकाएं कक्षाओं में पहुंची...! पहले झिझक के कारण लज्जाति रही लेकिन जब हम सब वहाँ से हट गए तो खूब अभिनय किया...! किसी ने copy चेक की तो किसी ने सवाल पूछे...! बच्चों को सख्त हिदायत थी कि अनुशासन भंग हुआ तो ऐसे कार्यक्रमों को भविष्य के लिये मुल्तवी कर दिया जाएगा।

school में अभूतपूर्व शांति थी सब classe अच्छे से चल रही थी....! बच्चें और नई शिक्षिकाएं अपनी समस्याओं के समाधान खुद ही तलाश रहे थे। सब कुछ फिर सामान्य हो गया....! समाज ने यह स्वीकार कर लिया कि लडकिया किसी से कम नही है! कम से कम हमारी school में महिला सशक्तिकरण.... का एक पड़ाव पूरा हो गया।

अब हम तो दिवसों की औपचारिकताओ से ऊपर उठ रहे है....🌹😀🙏🙏🍂🍁

टिप्पणियाँ

संकल्प ने कहा…
बहुत ही शानदार है ✍👌👌🙏

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मैं तुमको विश्वास दु।

यादें

interview transcription।