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एक सफल कहानी

- एक सफल कहानी- " किसी की लडाई में शामिल होने से मुश्किल है उसे अकेले लड़ते हुए देखना! उसे अकेले संघर्ष में  झुझते और गिरते हुए देखना उतना ही तकलीफ देता है जितना की लडने वाले को देता होगा!! पर जब वो अकेला लड कर जीतता है तो खुशी डबल से भी ज्यादा हो जाती है!! मोहन जी के संघर्ष के दिनों को मैंने, अमर ने और नियाज ने बहुत करीब से देखा है। वो जब अकेले पढते, और मुसीबतों से झुझते थे तो हम चाहकर भी उनकी लडाई में शामिल नही हो सकते थे! क्योंकि हम सब की लडाइयाँ अलग-अलग थी। जब नियाज जी का सलेक्श हुआ और पार्टी दी तो मोहन जी ने का " मैं भी सलेक्ट हो कर यही पर पार्टी दूंगा और यही पर तुम सब को मूवी दिखाउंगा " मैं और अमर वहाँ पर इंतजार करते रहे की कब मोहन जी सलेक्ट होंगे और कब पार्टी होगी? तीन - चार दिन के नम्बर से हमे मोहन जी का फोन आता था तो हम दोनों लाउडस्पीकर कर देते थे!  क्योंकि हमसे बात करने के बाद मोहन जी हम दोनों से एक ही बात बोलते थे कि " बताओ यारों मेरा सलेक्शन तो हो जायेगा ना ? और हम दोनों एक ही आवाज में एक साथ बोलते थे " मोहन जी आपका नम्बर तो सयोर है "