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सोचा तो यह भी था कि

सोचा तो यह भी था कि तिनके बटोर ने की जुगत में जिंदगी जाया न करेंगे भूल जाएँगे उन खताओं को जो कभी की ही नही थी उन्होंने माफ करेंगें उनको भी जिनके जुर्म न थे कुछ दो बातों का गम वहाँ भी रखेंगे लोग जहां सब्र के बांध तोड़ देते है सोचा तो यह भी था कि पचायेंगे दूसरों की सफलताओं को सहन करना सीखेंगे खुदको थप थपाएँगे किसी कि पीठ मायूसी में कंधे लेकर हाजिर होंगे अपने विफलता पे हंसने से रोकेंगे खुदको उठने को थामेंगे , बढाएंगे हाथ सोचा तो यह भी था कि जारी रखेंगें अपनी सहज हँसी को कुटिल मुस्कुराहटों से करेंगे परहेज कुचलने से रोकेंगे खुद को, औरों का स्वाभिमान पता तो यह भी था कि इतना आसान न होगा यह सब , .....................! Ishwar Gurjar  Mail - ishwargurjar9680@gmail.com

रेखाएं हाथों की खुद ही जोतनी होगी

लम्हें खास होने की अदावत में है तू एक भरी नजर तो देख। कुछ नया करने की इच्छा दबाए पांवों से कुरेदते जमी वक्त सफेद बादलों सा उड़ रहा मकबूल मौसम कभी रहे तो नही यह दुःख , मायूसी , उसकी शरारत में है तू एक भरी नजर तो देख। रेखाएं हाथों की ख़ुद ही जोतनी होगी कर्मो पर चलाने होंगे,  हल बुनने होंगे रूई से ख़्वाब यूंही आखिर पत्ते जड़ नही जाते बगैर नई कपोलों की आहट यह हार, शिकस्त , पस्त  तो किस्मत में हैं तू एक भरी नजर तो देख। मछलियां बड़ी, छोटी को, खा भी तो जाती है उन पर नही लगता धर्म का पाप कोई अनैतिक भी तो नही है, मानता सदियों से चलन भी तो यही रहा यह बदलती वफ़ाए, न्याय के दोहरे मापदंड हकीकत में है तू एक भरी नजर तो देख। इसलिए दुविधाएँ कम हो जितनी, सही है द्वंद्व का चिंतन, अक्सर बेअसर है सोचते नही,  रचने वाले, सुविधानुसार, विचारधाराओं को प्रस्तावक, बदलते रहते है, अक्सर जरूरत पड़ने पर, कूच कर जाते है लश्कर, अपने हिस्से के साथ सब होते है, मगर न होते साथ कोई यह एकाकीपन , बिछुड़न तो सफर में है तू एक भरी नजर तो देख। इसलिए , रेखाएं हाथों की खुद ही जोतनी होगी। Ishwar Gurja r  Mail