सोचा तो यह भी था कि

सोचा तो यह भी था कि

तिनके बटोर ने की जुगत में
जिंदगी जाया न करेंगे

भूल जाएँगे उन खताओं को
जो कभी की ही नही थी उन्होंने

माफ करेंगें उनको भी
जिनके जुर्म न थे कुछ

दो बातों का गम वहाँ भी रखेंगे
लोग जहां सब्र के बांध तोड़ देते है

सोचा तो यह भी था कि

पचायेंगे दूसरों की सफलताओं को
सहन करना सीखेंगे खुदको

थप थपाएँगे किसी कि पीठ
मायूसी में कंधे लेकर हाजिर होंगे अपने

विफलता पे हंसने से रोकेंगे खुदको
उठने को थामेंगे , बढाएंगे हाथ

सोचा तो यह भी था कि

जारी रखेंगें अपनी सहज हँसी को
कुटिल मुस्कुराहटों से करेंगे परहेज

कुचलने से रोकेंगे खुद को,
औरों का स्वाभिमान

पता तो यह भी था कि इतना आसान न होगा
यह सब , .....................!

Ishwar Gurjar 

Mail - ishwargurjar9680@gmail.com

















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