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यादें

यादें सिलवटों की तरह होती है। परत-दर-परत बेतरतीबी सी सिमटी हुई। बचपन को याद करो तो लड़कपन याद आता है। वर्तमान को देखो तो अतीत हर जिल्द में पिरोया दिखता है। साल-दर-साल जमा होते जाते है और उम्र बढ़ती जाती है; जो अभी कल का लगता था उसको दशक बीत गए है।   यादें डामर की सड़कों सी सपाट नहीं होती , मस्तिष्क में पगडंडियों का बिछा जाल है। एक दूसरे में गुत्थी, उलझी, धुंधलाती लकीरों सी, मानो किसी ने बहुत से धागों को एकसाथ समेट कर रख दिया हो।    बहुत पुराना कुछ याद करने का प्रयास करोगे तो हाल का कुछ याद आएगा और अभी , का कुछ याद करोगे तो उसमें छुपी पुरानी याद; जी उठेगी। जब आप यादों में धंसते है ; यह देखने को की कौनसी याद सबसे पुरानी है; तब आप पाते है की उस क्षैतिज पर जाकर नजर धुंधला जाती है। दृश्य बनते और बिगड़ते है। मुकड़े याद आते है तो पहचान घूम हो जाती है; बोल फूटते है तो संदर्भ गायब हो जाते है। कुछ बड़ी घटनाएं हमेशा याद रहेगी लेकिन उनके विवरण सूखते जाते है। बहुत मुश्किल है ; यह तय कर पाना की कौनसी याद शुरुआती है। बचपन के संगी साथी याद आते होंगे, खेल और उनमें लगी चोट याद होंगी; फिर किसी को लड़कपन

सात तरह के सपने

सपने हमारी जमा कुल तमन्नाओं के कारण आते है। हमारी अधकचरी इच्छाएं जमा होती जाती है और फिर सपनो में बहती है। जैसे आप किसी से नाराज है और पिटना चाहते है। लेकीन आपने लड़ाई नही की वो गुस्सा सपने में रूप बदल के आएगा। सपने faild और सफल दोनों होते हैं। जिन सपनो के बाद गिल्ट रहे जाए उसे फेल्ड ड्रीम मानेंगे। सात सपने है जो यूनिवर्सल होते है।  हर कोई देखता है।  जिसमे छ सपनो के मायने समान होते है एक सपने के मायने लड़का और लड़की में अलग अलग होता है। 1. की आप हवा में उड़ रहे है 2. आप गिर रहे है 3.examination, ड्रीम ऑफ बेटल। ऐसा एग्जाम जिसे आप पास कर चुके है। उसके फेल होने का सपना आता है 4। आपका कोई पीछा कर रहा है और आप भाग नही पा रहे है 5. किसी की मृत्यु का सपना 6. दांत टूटने का सपना इसका अलग अलग अर्थ होता है । 7. पब्लिकली नग्न होने के डर का दाग का शेर है। बहुत रोया हूं मैं जब से यह मैंने ख्वाब देखा है की आप आंसू बहाए सामने दुश्मन के बैठे हैं 
इंसानी गणित और उसका कर्महीन उत्साह। निष्कर्ष, धारणाएं और थोपी हुई मर्यादा। बाते, खबरें और सूचनाएं सब अधकचरी, और उगली हुई है। सच केवल भोगा और जिया हुआ है। कबीर जिसे आँखन देखी कहते है।  अज्ञेय ठीक ही कहते थे। " मौन ही अभिव्यंजना है; जीतना तुम्हारा सच है उतना ही कहो " कहा सागर ने : चुप रहो! मैं अपनी अबाधता जैसे सहता हूँ, अपनी मर्यादा तुम सहो। जिसे बाँध तुम नहीं सकते उस में अखिन्न मन बहो। मौन भी अभिव्यंजना है : जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो। कहा नदी ने भी : नहीं, मत बोलो, तुम्हारी आँखों की ज्योति से अधिक है चौंध जिस रूप की उस का अवगुंठन मत खोलो दीठ से टोह कर नहीं, मन के उन्मेष से उसे जानो : उसे पकड़ो मत, उसी के हो लो।

इंसानी गणित

ओह! तुम जीत गए। तुम्हारी कितनी बड़ी जीत? ओह! तुम हार गए तुम्हारी कितनी शर्मनाक हार? अच्छी बात, पर सूरज वहीं उगा  जहां से रोज उगता है इंसानी गणित और उसका कर्महीन उत्साह सब निराधार तुम्हारी जीत भी, हमारी हार भी

PS-I

कुंदवई चोल साम्राज्य की एक राजकुमारी ,   परान्तक द्वितीय और वनवन महादेवी की पुत्री थीं।  वह तिरुकोइलूर में पैदा हुई  और चोल सम्राट राजराजा प्रथम की बड़ी बहन थी । उनका नाम इलैयापिरत्ति कुंडवई नचियार था ।   PS -I मूवी में कुंडवाई का किरदार तृषा ने पूरे राजोचित अहम के साथ निभाया। ऐश्वर्या (नंदिनी के रूप में) के बरक्स तृषा की अदाकारी कही से भी कमतर नही है। उनकी भावभंगिमा में राजकुमारी का गुरुर और आत्मविश्वास झलकता है।  इतिहास में राजकुमारियो का वो स्थान नहीं रहा जो राजकुमारो का रहा है। राजकुमारियां का प्रयोग राजनैतिक सांठगांठ और दुर्भी संधियो में एक वस्तु के रुप में होता रहा है। यह कोई नई बात नही है।   लेकिन कुंडवई महलों की साज- सजा और श्रृंगार के लिए ही नही बनी थी। उन्होने इतिहास में पोन्नियन सेलवन (राजराज प्रथम )  की बडी बहन और संरक्षक के साथ राजेंद्र प्रथम के अभिभावक की भूमिका भी निभाई । यानि चोल वंश का महान इतिहास कुंडवई के हाथो में पुष्पित और पल्लवित हुआ।  उन्होंने हिंदू और जैन मंदिरों का निर्माण तो करवाया ही। साथ ही तिरुवंतपुरम में एक अस्पताल और कला विद्यालयों के निर्माण के साक्ष्य भ

रामराज्य

आशुतोष राणा की भाषा में राम भक्ति, शक्ति और वैराग्य का पुंज है। भरत जहां भावों से भरे है , उन्हें मृण्मय में भी चिन्मय दिखाई देता है; वही राम का चित्त ज्ञानी का चित्त है। वह भाव आसक्त होकर भी उनसे परे है। उन्हे चिन्मय में भी मृण्मय दिखाई देता है। इसलिए जगत और संबंधों की निस्सारता से विलग वनवास का चुनाव राम ही कर सकते हैं। कोई और नही।   राम की कहानी को जाने कितनी चेतनाओं ने अपने-अपने विमर्शों से कहा है। वाल्मीकि के पौराणिक राम, तुलसी के मध्यकालिन राम और निराला की "राम की शक्ति पूजा" के आधूनिक पुरषोत्तम नवीन राम ; आशुतोष राणा के यहां तक पहुंचकर प्रगतिशील वैरागी  चेतना के राम बन जाते है। राम की कहानी और कथानक को जितनी बार  और जितने तरीकों से गाया और बखाना गया है वैसा दूसरा उदहारण दुनिया में शायद हो। क्या यही " संभवामि युगे-यूगे नहीं है" "रामराज्य"  में आशुतोष राणा ने कई मौलिक उद्भावनाए की है। कैकेयी और शूर्पणखा जैसे कलंकित माने जाने वाले चरित्रों को अपराध से मुक्त करने का प्रयास किया। वनवास को कैकेयी की महत्वकांक्षा न मानकर राम का स्वयं में इच्छित अपेक्षा मान

Winter is coming

सावन की उमड़ती- घुमड़ती घटाए अब नही, न भादो की बौछार है। बिजली की कड़कड़ाहट भी अब सुनाई नही देती, न काली घटाए ही चढ़-चढ़ कर आती है। आसोज की अंतिम रात है। शरद पूर्णिमा। वर्षा ऋतु को यहां समाप्त समझो। भूले-भटके, लोटते बादळे बरसते जाते है। मानो विदा ले रहे हो कि अब एक वर्ष की गई।   बरखा का वो जोर अब नही। और आसोज ( अश्विन) महीने की पूर्णिमा ( शरद पूर्णिमा) तो शरद ऋतु की शुरुआत ही है।  बरस-बरस कर आसमान रीत गया है। मानो सारा मतमैलापन पानी संग बरसा हो।  साफ, नीला, ओस से भींगा आकाश। धरती की नमी से आबद जान पड़ता है। जैसे गीली धरती की उच्छावास (सांस) से भाप युक्त हो गया हो।  शरद का मौसम सबसे सुहाना और स्वच्छकारी है। पठारो और मैदानों में भी पहाड़ों जैसी सुहानी जलवायु का लुत्फ । दिन सामान्य और राते ठंडी होने लगती है।  सुबह की ओस से भींगी घास और संध्या का खिला लालिमा युक्त नीलाम आकाश। नदी-नाले, ताल-तलैया डबडबाई आंखों से भरे है। हवा का रुख बदलने लगता है। मंद हल्की हवा , नहाई धुली लगती है।  आसोज में पकी फसले , काती ( कार्तिक) में कटने को तैयार होती है। दिवाली तक खेत खलियान का टैम होता है। जंगली बैर ब