इंसानी गणित
ओह! तुम जीत गए।
तुम्हारी कितनी बड़ी जीत?
ओह! तुम हार गए
तुम्हारी कितनी शर्मनाक हार?
अच्छी बात,
पर सूरज वहीं उगा
जहां से रोज उगता है
इंसानी गणित
और उसका कर्महीन उत्साह
सब निराधार
तुम्हारी जीत भी, हमारी हार भी
तलाश एक शब्द नही, तलाश एक नजर है। तलाश एक क्षण नही , तलाश मुझको हर पल है। क्योंकि जीवन पूर्णता नही है, जीवन निपूर्णता भी नही है। जीवन एक सफ़र है जिसे आप तय कर रहे होते है। साबिर का एक शेर है कि "सभी मुसाफ़िर चलें अगर एक रुख़ तो क्या है मज़ा सफ़र का , तुम अपने इम्काँ तलाश कर लो मुझे परिंदे पुकारते हैं। - Ishwar Gurjar Email- ishwargurjar9680@gmail.com
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