गरीब गायक
नमस्ते ! कल भीलवाडा से जयपुर आ रहा था । ट्रेन का डिब्बा लोगों से खच्चा-खच्च भरा था । हर कोई अपने में खोया हुआ अपने गन्तव्य की ओर बढ रहा था । कही कोई हलचल नहीं एकदम निरस यात्रा । तकरीबन एक घंटा चलने के बाद गाडी विजयनगर स्टेशन पर रुकी कुछ यात्री उतरे तो कुछ चढे और फिर वही निरस सफर शुरू हो गया। थोडी देर बाद कही से किसी गीत के बोल मेरे कानों तक पहुंचने लगे। मुझे वो धीमी आती आवाज अपनी ओर खींच रही थी। धीरे धीरे आवाज नजदीक आती जा रही थी। आवाज की तरफ मुड कर देखा तो क्या देखता हूँ। एक व्यक्ति दरवाजे का सहारा ले कर खडा है । कपडे उसके मेले व बहुत पुराने है हाथों में सारंगी और चेहरे पर सागर सी गम्भीरता लिए वह अपनी जुबां से जिन्दगी की हकीकत गा रहा था। और एक छोटी सी लडकी लोगों के सामने कटोरा आगे करती कुछ देर रुक कर फिर आगे बढ जाती । जाने ये ऐसा कितनी सदियों से कर रही थी । उसे सुनकर मेरा मन खिल उठा क्या आवाज थी! उमदा शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी की कलम से निकला और मोहम्मद रफी साहब की जुबां से बहा ये गीत जहां की हकीकत से मुक्कमल करवाता है । उस अनजान कलाकार की आवाज मोहम्मद