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मैं आजाद....

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            --श्री चन्द्रशेखर आजाद-- उदास शब की घड़ियों में चंद लफ़्जात तो मेरे भी थे। मुकाबिल दौर में आजाद ख्यालात तो मेरे भी थे । वतन के हमजवां दिलों ,मुझे बताओगे क्या। वो खुली सहरों के बुलावे तो मेरे भी थे।                                     ---   ईश्वर जिक्र करता हूँ। एक ऐसे शख्स के बारे में जिनकी तमन्ना थी की मातृ-ए-वतन का ज़रा-ज़रा आजादी की खुशबू से महके और हिन्द की फिजाओं में एक आजाद हवा जहाँ साँस लेने की इजाजत नही लेनी पडती हो । मुल्क का हर बाशिंदा अपने आप को बेसहारा और लाचार महसूस ना करे बल्कि मन में स्वतंत्रता और महफ़ूजी का अहसास रखे। ये ख़्वाब उनकी आँख़ों ने तब देखा था जब हमे सपने देखने की आजादी भी नसीब नही थी। मातृ-ए-हिन्द की स्वतंत्रता के लिए नाजाने कितने ही चरागों ने अपनी रोशनी कुर्बान की जिनमे से बहुतों का तो कभी हम जिक्र ही नही कर पाये । वो खामोशी से आये और सब कुछ भारती को न्योछावर कर खामोशी में ही लिन हो गये । लेकिन उनमें से ही कुछ रोशन चराग ऐसे थे जिनकी लौ ने चिंगारी का काम किया और यही चिंगारी आगे चल कर दुनिया के महान साम्राज्य को ध्वसत करने में कामयाब