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दो पत्रकार दो आत्मकथा

दो पत्रकार। दो आत्मकथाएँ। वो भी भारत की आजादी के बाद के दौर से लेकर वर्तमान तक के एक समान कथानक और कंटेंट में । अपने आप मे रोचक और तुलनात्मक अध्ययन है। आप समझ पाते है कि एक ही घटना को ठीक उसी वक्त में  दो अलग-अलग  लोग किस तरह दर्ज कर रहे थे? पत्रकार का जीवन सही मायने में किसी समाज के बदलावों का ज्यादा प्रमाणिक और रोचक साक्षी होता है। बेशर्त की वो सही मायने में पत्रकारिता करता रहा हो और जिसने अपने पेशे को जिया हो। अंग्रेजी के पत्रकारों द्वारा लिखी जाने वाली आत्मकथाओं और दूसरों की जीवनियों को खूब पढा जाता रहा है इसकी एक वजह तो यह रही हो कि उनके पास अच्छी लेखन कला के सिवाय चौका देने वाले किस्सों  की कमी नही होती है। दूसरी वजह उन से होने वाले ख़ुलासे है। जो राजनीतिक खिचड़ी में मसाले का काम करते आये है। कुलदीप नैयर और करण थापर। दोनो का जीवन अलग अलग पृष्टभूमियो और परिस्थितियों में बिता। कुलदीप  का परिवार बंटवारे से पूर्व सियालकोट में रहता था और बंटवारे के बाद भारत आया। ऐसे में तक़सीम में हुई नाइंसाफियों और बदनसिबियो को उन्होंने न केवल नजदीक से देखा बल्कि भोगा भी। उन्होंने बंटवारे के लिए तैया

पहला कदम मानसिक मजबूती

"Note- यह लेख सिविल सर्विस में चयनित अनामित व्यक्ति का है। अच्छा लगा इसलिए मेरे ब्लॉग पर पुनः प्रकाशित किया गया है।  सारा क्रेडिट उनका है अपने हिस्से केवल साझा करने का श्रेय है।" यदि आपने आई.ए.एस. बनने का फैसला कर ही लिया है, तो देश के इस सबसे बड़े और काफी कुछ कठिन दंगल में आपका स्वागत है। मेरी शुभकामनाएं भी हैं, और ईश्वर से आपके लिए प्रार्थना भी है कि वह लम्बे समय तक आपके धैर्य, आपके आत्मविश्वास और आपके जोश को बनाए रखे, क्योंकि ये बातें इसके लिए बहुत जरूरी होती हैं। फिर भी, इससे पहले कि मैं आपको यह बताऊं कि आप आई.ए.एस. कैसे बन सकते हैं, मैं आपसे एक प्रश्न पूछने की, बहुत ही जरूरी और मूलभूत प्रश्न पूछने की इजाजत चाहूँगा। मैं आपसे यह प्रश्न इसलिए पूछना चाह रहा हूँ, क्योंकि मैंने आई.ए.एस. के विद्यार्थियों का मार्गदशन करने के अपने लम्बे अनुभव में यह पाया है कि हमारे नौजवान जोश में आकर पर्याप्त सोचे-समझे बिना ही इस दंगल में कूद पड़ते हैं, और कुछ सालों तक पटखनी खाने के बाद पस्त होकर इससे बाहर आ जाते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि इस प्रतियोगिता में उतरने से पहले प्रत्येक स्टूडेन्ट को ख