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भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव......

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आज 23 मार्च है यानि शहादत का दिवस  लेकिन मेरे नौजवान साथियों को इस दिवस से कोई ताल्लुकात ही नही।  पश्चिम की भौतिकवादी नीतियों ने हमें इतना परिवर्तित कर दिया कि हम अपने मूल संस्कारों को ही भुला बैठे हैं त्याग समर्पण और बलिदान जो हमारी संस्कृति का एक संस्कार रहा है वह वर्तमान के नौजवानों में कहीं देखने मात्र को भी नही मिलता । हम वक्त के हास्य पर खड़े हुए लोग हैं यहां हमें सोचना चाहिए ! हमने अपने नायक गलत तलाश लिए । पाँच- दस रूपये की क्रिम लगा कर घण्टे दो घण्टे तक कैमरे के सामने उछल कूद करने वाले हीरो नहीं कहलाते । असली हीरो वे होता है जो अपनी मातृभूमि के लिए अपने लोगों के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दें । 28 सितंबर सन 1907 को भगत सिंह का जन्म पाकिस्तान के लरकाना जिले मे हुआ। पिता और चाचा पहले से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सलंग्न थे । उनको भी ऐसा ही माहौल मिला । पढ़ने में वे काफी होशियार थे । किताबें पढ़ने का तो उन्हें इतना शौक था कि ग्रेजुएशन करते करते उन्होंने हिंदी उर्दू का लगभग संपूर्ण साहित्य पढ़ डाला था। मैं आपको उनके बारे में तथ्यात्मक जानकारी नहीं बताऊंगा वह तो आप क