संदेश

मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रात की गहरी घड़ियां

रात की गहरी घड़ियों में धरती सांस लेती है। किसी ने सुना है उसके सीने से आती सांसों की आवाजों को वो जख्म सीती है अपने रात भर ताकि नई जख्मो के लिए तैयार हो सके नई सुबह

बेवक्त सब जिते है।

वक्त के साथ कोई नही ज़िता, बेवक्त सब जिते है। ख्याल सवा उम्र तक जिते है , रिश्ते पूण तक छलावे जिंदगी भर जी जाते है, और साये रात तक वफ़ादारियाँ कीमतों से ज़िती है और भरोसे धोखे तक मोहब्बत किस्सों में जिवित है और बगावतें इतिहासो में पाप ताउम्र जी जाते है,पुण्य कभी नही जिते आख़िर वक्त के साथ कोई नही जिता, बेवक्त सब जिते है।

सेपियंस

'युवाल नोआ हरारी'  की किताब  "सेपियंस"  में मनुष्य की साझी कल्पना के बारे में बताया गया है की कैसे कुछ मिथकों में साझा विश्वास करने की वजह से लाखों अपरिचित मनुष्य भी एक साथ सहयोग करने के लिए  तैयार हो जाते है। सियासत, मजहब , राष्ट्र और पैसे कुछ और नही हमारी साझी कल्पनाओं के उत्पाद है। सहयोग करने के लिए यह जरूरी है कि हमारे लोक विश्वास साझे हो। और हमने यह किया। सहयोग की प्रबलता इसी बात पर निर्भर करती है कि लोग कितनी शिद्दत से उस मिथक में विश्वास करते है। यही वजह है कि वक्त के साथ कुछ मिथकों की प्रासंगिकता क्षीण होने लगती है और कुछ की अधिक मजबूत। उदाहरण के लिए जैसे-जैसे सभ्यताए और समाज तार्किक होते जाएंगे वैसे-वैसे मजहबी मिथकों की बुनियादें कमजोर होती जाएगी और वैज्ञानिक मिथक मजबूत होने लगेंगे। इन्हीं मिथकों की वजह से दुनिया कई समुदायों, देशों, पंथों व वर्गों में आसानी से अपने-अपने विश्वासों के साथ जी रही है। मिथकों ने दुनिया को सहयोग करने के लिए जोड़ा ; तो विभक्त भी किया । लोक-विश्वासों की विविधता और श्रेष्ठता के बोध ने इतिहासों को महायुद्धों व लम्बी लड़ाइयों से पाट रखा

आरम्भिक मनुष्य

मामूली घास के दानों के मोह में मनुष्य ने अपनी प्राकृतिक आज़ादी से खुशी-खुशी समझौता कर लिया था। पहले मैदानों में खेत बने फिर उनके इर्दगिर्द छोटी मानवीय बस्तियां, फिर सामूहिक सहयोग के लिए गांव जैसी संस्थाए जो निरंतर बढ़ती होई महानगरों में बदल गयी।  सामाजिक झुंडगपशप में इतना प्रमोद मनोरंजन था कि मनुष्य ने अपने जैनेटिक कोड को बदलकर पीढ़ियों को राजनीतिक, मजहबी , राष्ट्रीय झूठ बोलने और मिथक गढ़ने में सक्षम बनाया ।