आरम्भिक मनुष्य

मामूली घास के दानों के मोह में मनुष्य ने अपनी प्राकृतिक आज़ादी से खुशी-खुशी समझौता कर लिया था। पहले मैदानों में खेत बने फिर उनके इर्दगिर्द छोटी मानवीय बस्तियां, फिर सामूहिक सहयोग के लिए गांव जैसी संस्थाए जो निरंतर बढ़ती होई महानगरों में बदल गयी।  सामाजिक झुंडगपशप में इतना प्रमोद मनोरंजन था कि मनुष्य ने अपने जैनेटिक कोड को बदलकर पीढ़ियों को राजनीतिक, मजहबी , राष्ट्रीय झूठ बोलने और मिथक गढ़ने में सक्षम बनाया ।

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