Winter is coming

सावन की उमड़ती- घुमड़ती घटाए अब नही, न भादो की बौछार है। बिजली की कड़कड़ाहट भी अब सुनाई नही देती, न काली घटाए ही चढ़-चढ़ कर आती है। आसोज की अंतिम रात है। शरद पूर्णिमा। वर्षा ऋतु को यहां समाप्त समझो। भूले-भटके, लोटते बादळे बरसते जाते है। मानो विदा ले रहे हो कि अब एक वर्ष की गई।   बरखा का वो जोर अब नही। और आसोज ( अश्विन) महीने की पूर्णिमा ( शरद पूर्णिमा) तो शरद ऋतु की शुरुआत ही है।  बरस-बरस कर आसमान रीत गया है। मानो सारा मतमैलापन पानी संग बरसा हो।  साफ, नीला, ओस से भींगा आकाश। धरती की नमी से आबद जान पड़ता है। जैसे गीली धरती की उच्छावास (सांस) से भाप युक्त हो गया हो। 

शरद का मौसम सबसे सुहाना और स्वच्छकारी है। पठारो और मैदानों में भी पहाड़ों जैसी सुहानी जलवायु का लुत्फ । दिन सामान्य और राते ठंडी होने लगती है। 

सुबह की ओस से भींगी घास और संध्या का खिला लालिमा युक्त नीलाम आकाश। नदी-नाले, ताल-तलैया डबडबाई आंखों से भरे है। हवा का रुख बदलने लगता है। मंद हल्की हवा , नहाई धुली लगती है।  आसोज में पकी फसले , काती ( कार्तिक) में कटने को तैयार होती है। दिवाली तक खेत खलियान का टैम होता है। जंगली बैर बोरने लग जाते है। मक्की और कपास से खेत खाली होने लगते है। चारा काटने और नई फसल के रेलने तैयार होते है। काती का महीना किसानी में सबसे व्यस्तता का महीना  है। काती का ताव ऐसा की पूरा महीना पुराने को उवेरने और नए का मौका रखने में बीतता है। दिवाली आते-आते खेत खाली हो जाते है और नई फसल एक दो पाण पी जाती है।  दिवाली के साथ ही शरद खत्म होकर हेमंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है। अब रातों की सर्दी और तीखी होने लगती है। दिन छोटे और राते लंबी हो आती है। जो सूरज जेठ आषाढ़ में देर तक आसमान में चमकता रहता , अब पांच बजे के बाद ही घर को भागने लगता है। साल-दुसाले , कंबल कंधे से शरीर पर सरक आते है।  आगे माघ और पौष का जाड़ा तो हाड़ कांप होता ही है। 

लेकिन शरद पूर्णिमा से कार्तिक अमावस का यह बक्त सबसे मनमोहक और सुहाना लगता है। न ज्यादा सर्दी , न उमस। न गरजते मेघ, न कड़कती बिजली। है तो केवल नीपा पोता नीला आकाश और भाप छोड़ती वसुंधरा।


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