You Star Dying Slowly..!

#पाब्लो नेरुदा -12 July

सही मायने में जनकवि शायद वही होता है जो प्यार को क्रांति और क्रांति को प्यार मानता है, उन्हें अलग नहीं बल्कि एक ही नदी की दो लहरों की तरह देखता है- जो बहती है जन जन में. लातिन अमरीकी समाज ही नहीं बल्कि कविता से प्रेम करने वाले लाखों दिलों को यूंही सहलाती दुलारती गई है पाब्लो नेरुदा की कविता.

चिली के मशहूर कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता पाब्लो नेरूदा ऐसे ही कवियों में से थे जो दुनिया की ख़ूबसूरती को अभिव्यक्ति का चोला पहना कर उसमें चार चाँद - 12 लगाते हैं.

12 जुलाई 1904 को जन्मे पाबलो नेरूदा की जन्मशती दुनिया के कई हिस्सों में मनाई जा रही है.

दुनिया के चहेते कवि पाब्लो नेरूदा को श्रद्धाँजलि देने के लिए 12 जुलाई को विश्व कविता दिवस मनाया गया.

इस महान कवि का पहला काव्य संग्रह 'ट्वेंटी लव पोयम्स एंड ए सॉंग ऑफ़ डिस्पेयर' बीस साल की उम्र में ही प्रकाशित हो गया था.

पाब्लो नेरुदा ने लिखा है,

मुझे प्यार है उस प्यार से जिसे बांटा जाए चुंबनों में, तलहटी पर और रोटी के साथ.
प्यार जो शाश्वत हो सके और हो सके संक्षिप्त
प्यार जो अपने को मुक्त करना चाहे फिर प्यार करने के लिए
दैविक प्यार जो एक दूसरे को क़रीब लाता है
दैविक प्यार जो दूर चला जाता है.

नेरूदा को विश्व साहित्य के शिखर पर विराजमान करने में योगदान सिर्फ उनकी कविताओं का ही नहीं बल्कि उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का भी था.

वो सिर्फ़ एक कवि ही नहीं बल्कि राजनेता और कूटनीतिज्ञ भी थे. और लगता है वो जब भी क़दम उठाते थे रोमांच से भरी कोई गली कोई सड़क सामने होती थी.

चिली के तानाशाहों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के बाद उन्हें अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़ना पड़ा. इटली में जहां शरण ली वहां भी प्रशासन के साथ आंख मिचौली खेलनी पड़ी.

प्यार और क्रांति का समन्वय

अच्छी शराब, ख़ूबसूरत औरतों और सताए हुए लोगों से प्यार करने वाले इस कवि कि पंक्तियां पिछले पचास सालों में हज़ारों प्रेमियों के लिए अपने प्यार का इज़हार करने का जऱिया रही हैं.

ऐसा आख़िर क्या था पाब्लो नेरुदा की कविता में जो लोगों को अपने जादू की ग़िरफ़्त में बांधता चला जाता था- हिंदी के मशहूर कवि और समीक्षक अशोक वाजपेयी कहते हैं, "इसका बड़ा कारण थी उनकी कविता की स्थानीयता. उनकी कविता सार्वभौमिक होते हुए भी बहुत ठोस रुप से, बहुत पदार्थमय रुप से और बहुत ऐंद्रिक रुप से लातिनी अमरीकी कविता थी."

अशोक वाजपेयी कहते हैं, "उनकी कविताओं में प्रेम और क्रांति का अद्भुत समन्वय है. उन्होंने दोनों विरोधाभासी माने जाने वाली चीज़ों को संगुफित करके नया काव्यशास्त्र रच दिया."

साम्यवादी विचारधारा के पाब्लो नेरूदा की रचनाओँ में ज़हां प्रेम ने कई नई परिभाषाएँ पाईं वहीं व्यक्त हुआ लातिन अमरीका की शोषित जनता का आक्रांत स्वर. स्पेनिश नाटककार और नेरूदा के मित्र लॉर्का ने कहा था कि नेरूदा की कविता स्याही के नहीं बल्कि ख़ून के करीब है.

नेरूदा की विश्व प्रसिद्ध रचनाएँ 'माच्चु पिच्चु के शिखर' और 'कैंटो जनरल' ने विश्व के कई कवियों को प्रभावित किया और अशोक वाजपेयी मानते हैं कि उन्होंने पचास और साठ के दशक में भारतीय कवियों की सोच पर अपनी गहरी छाप छोड़ी थी.

त्रासद अंतिम दिन

एकजुट लोगों को कोई ताक़त नहीं हरा सकती... यह गीत नेरूदा के आख़री सालों की याद दिलाता है जो उनकी ज़िंदगी के सबसे नाटकीय वर्ष भी थे.

1970 में चिली में सैलवाडॉर अलेंदे ने साम्यवादी सरकार बनाई जो विश्व की पहली लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई साम्यवादी सरकार थी. अलेंदे ने 1971 में नेरूदा को फ़्रांस में चिली का राजदूत नियुक्त किया. और इसी वर्ष उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिला.

1973 में चिली के सैनिक जनरल ऑगस्टो पिनोचे ने अलेंदे सरकार का तख्ता पलट दिया. इसी कार्रवाई में राष्ट्रपति अलेंदे की मौत होगई और आने वाले दिनों में अलेंदे समर्थक हज़ारों आम लोगों को सेना ने मौत के घाट उतार दिया.

कैंसर से बीमार नेरूदा चिली में अपने घर में बंद इस जनसंहार के ख़त्म होने की प्रार्थना करते रहे. लेकिन अलेंदे की मौत के 12 दिन बाद ही नेरूदा ने दम तोड़ दिया.

सेना ने उनके घर तक को नहीं बख़्शा और वहां की हर चीज़ को तोड़ फोड़ कर एक कर दिया.

खंडहर में तब्दील इस घर से नेरूदा का जनाज़ा लेकर निकले चंद दोस्त. लेकिन सैनिक कर्फ़्यू के बावजूद हर सड़क के मोड़ पर आतंक और शोषण के ख़िलाफ़ लड़नेवाले इस सेनानी के हज़ारों चाहने वाले काफ़िले से जुड़ते चले गए.

और रुंधे हुए गलों से एक बार फिर उमड़ पड़ा साम्यवादी शक्ति का वो गीत जो नेरूदा ने कई बार इन लोगों के साथ मिल कर गाया था


*नोबेल पुरस्कार विजेता स्पेनिश कवि पाब्लो नेरुदा की कविता "You Start Dying Slowly" का हिन्दी अनुवाद..*

1) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- करते नहीं कोई यात्रा,
- पढ़ते नहीं कोई किताब,
- सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,
- करते नहीं किसी की तारीफ़।

2) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप:*
- मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,
- नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।

3) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
- चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
- नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,
- नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या
- आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।

4) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।

5) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
- अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,
- अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,
- अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।
*तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं..!!

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