मार्को पोलो
मार्को पोलो 13 वी सदी के उत्तरार्द्ध में एशिया घूम के आया था। उसने अपने जेल के साथी को बताया था कि हिंदुस्तान पूर्व में स्थित है। यूरोप के लिए दो सदियों तक एशिया को जानने का एकमात्र जरिया मार्को द्वारा लिखी किताब "the book of sir marko" रही। तब पूर्व को लेकर यूरोप में बहुत सी भ्रांतियां प्रचलित थी। जैसे सोने की नदियां बहने व जॉन नामक पूर्वी ईसाई राजा जिसके पास अकूत सोना था।
15 वी सदी के मध्य तक तुर्को ने कस्तून्तुनिया पर अधिकार कर लिया था और यूरोप का पूर्वी दुनिया से होने वाला स्थलमार्ग व्यापार पूरी तरह से या तो बन्द हो चुका था या तुर्को के रहमोकरम पर निर्भर। वेनिस के बाजारों में चीजो के दाम आसमान छूने लगे थे। पूर्व से चीजो का आवागमन बन्द होना यूरोप की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ने जैसा था। ग़रीबी और दरिद्रता के साथ आये प्लेग ने यूरोप के आर्थिक बौनेपन को और कमजोर कर दिया। यह वो समय था जब भारत, चीन और फारस की GDP पूरी दुनिया की GDP का 80% थी और एशिया को लगता था कि दुनिया उनके चक्कर लगाती है।
लेकिन स्थितियां बहुत तेजी से बदल रही थी। स्थापित साम्राज्य कमजोर पड़ रहे थे और नई शक्तियां उभर रही थी। रोमन समाज अपने वैभव के ढलान पर था। नए विचारों की सुगबुगाहट तेज होने लगी थी लेकिन अभी भी धर्म की कठोरता ने यूरोपीय जीवन को जड़ कर रखा था।
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