संदेश

अनकहें ज्जबात

जिन्दगी के बहुत से किस्सें इस तरह से लिखे होते है।  जिस तरह से नकल करने की चिट पर प्रश्नों के उत्तर लिखे होते है। जो हमें तो समझ में आते है पर पूरी दुनिया को नही। - हर उम्र अपने अनकहें किस्सों के पुलिंदें समेट कर अलग रखती है। इनमें वो जज्बात होते है जो किसी पर जाहिर होने वाले थे लेकिन वक्त और हालातों ने उन्हें जाहिर होने नही दिया। जैसे - उसे हंसतें हुए देख कर जो लगता है वो कैसा लगता है ? यह कोई किसी को कैसे बताए। यह ज्जबात किसी भी तरह से जाहिर नही हो सकते है। जैसे-  मुद्दतों तिनका तिनका जोड कर घरोंदा बनाने और उसके बन जाने की खुशी को वो परिंदा किस तरह से समझाएगा।  वो समझा ही नही पाएगा कि वो ऐसा कर के कितना गहरा गया है खुद में । ऐसे ही हजारों जज्बातों में जो जिन्दगी होती है वो ही जिन्दगी होती है। आखिर में उस गरीब के बच्चें के ज्जबात कैसे समझ पाओगे जिसे झण्डे पर नए जूतें मिलने वाले है वो अपनी खुशी को पूरी रात जाग कर सेलिब्रट तो करेगा लेकिन दर्ज नही! - ishwar

एक चिकू वाला,

आपने कभी सब्जी बेची है? नही बेची! आज से पहले मैंने भी नही बेची थी, पर आज कुछ देर के लिए ही सही मैं चिकू वाला बन गया। हुआ यूं की पढकर जब में अपने कमरे की तरफ लोट रहा था तो, सड़क के किनारे एक चिकूवाले ने बड़े बड़े चिकूओं का ढेर लगा रखा था, मुझे चिकू बहुत पसंद है। सोचा ! क्यों न चिकू खाए जाए? मैं चिकू की ठेले के पास गया तो वहाँ कोई नही था, मैंने सोचा चिकूवाला कही गया होगा, मुझे देखकर लोट आएगा, मैं अच्छे अच्छे चिकू छाँट कर चेले में डालने लगा, तभी एक पुरूष और महीला वहाँ आए और बोलो भैया चिकू क्या भाव दे रहे हो! वो मुझे चिकूवाला समझ रहे थे! मैंने सोचा क्या पता जिन्दगी में कभी चिकू बेचने वाला बनू या ना बनू पर क्यों न आज बन ही जाता हूँ। मैंने कहाँ छाँट लो बाबूजी, छाँट लो.. बहुत सस्ते है! वो दोनो चिकू देखने लगे, इधर-उधर कर थोडी देर बाद फिर बोले.. दोगे क्या भाव मैंने कहाँ देदेंगे बाबूजी भाव की क्या फिक्र करते हो आप देखो तो सही बहुत अच्छे चिकू है ऐसे चिकू आपको पूरी मंडी में नही मिलेंगे । मैं भाव कैसे बताता मुझे इनके भाव का कोई अंदाजा नही था। बहुत सारे चिकू छाँट कर महीला ने बोला यह लो तौल

एक सफल कहानी

- एक सफल कहानी- " किसी की लडाई में शामिल होने से मुश्किल है उसे अकेले लड़ते हुए देखना! उसे अकेले संघर्ष में  झुझते और गिरते हुए देखना उतना ही तकलीफ देता है जितना की लडने वाले को देता होगा!! पर जब वो अकेला लड कर जीतता है तो खुशी डबल से भी ज्यादा हो जाती है!! मोहन जी के संघर्ष के दिनों को मैंने, अमर ने और नियाज ने बहुत करीब से देखा है। वो जब अकेले पढते, और मुसीबतों से झुझते थे तो हम चाहकर भी उनकी लडाई में शामिल नही हो सकते थे! क्योंकि हम सब की लडाइयाँ अलग-अलग थी। जब नियाज जी का सलेक्श हुआ और पार्टी दी तो मोहन जी ने का " मैं भी सलेक्ट हो कर यही पर पार्टी दूंगा और यही पर तुम सब को मूवी दिखाउंगा " मैं और अमर वहाँ पर इंतजार करते रहे की कब मोहन जी सलेक्ट होंगे और कब पार्टी होगी? तीन - चार दिन के नम्बर से हमे मोहन जी का फोन आता था तो हम दोनों लाउडस्पीकर कर देते थे!  क्योंकि हमसे बात करने के बाद मोहन जी हम दोनों से एक ही बात बोलते थे कि " बताओ यारों मेरा सलेक्शन तो हो जायेगा ना ? और हम दोनों एक ही आवाज में एक साथ बोलते थे " मोहन जी आपका नम्बर तो सयोर है "

" ऐ जिन्दगी मेरी....

पीछवाड़े के नीम की झुकी टहनियों सी कच्चें घरों की सुन्नी पड़ी देहलियों सी सिसकती रातों में हिचकियों सी ऐ जिन्दगी मेरी, तुम कैसी हो री ? तुम हो ख्वाबों में नींद प्रियसी जैसी तुम हो रातों में गहरी चाँदनी जैसी तुम दर्द के सीने की गर्म साँस सी हो तुम सदियों से दबे गहरे राज सी हो तुम हो मौत के माथे पर जुल्फ जैसी तुम हो बँटे हुए, मेरे मुल्क जैसी ऐ जिन्दगी मेरी तुम कैसी हो री ?

एक याद किस्सा, शान्ति लाल गुप्ता जी

   एक याद किस्सा  -" डॉ.शांतीलाल गुप्ता "           - दीवाली के एक दिन पहले जयपुर से घर जाने के लिए निकला। सिंधी कैंप से पाँच रूपये की एक कटिंग चाय खरीद कर रोडवेज बस की सीट पर बैठा ही था की बस चल दी। चाय मैं कैसे छोडता। सो अपनी सीट पर बैठकर चाय पीने लगा। थोडी देर बाद आगे वाली सीट पर बैठे, हाथ में थैली थामे सज्जन ने मुझसे कहा ! " चाय पीने के बाद यह जो कप है , इसे बाहर नही फैंक कर मुझे दे देना।" मुझे बात कुछ अजीब सी लगी। सोचा यह कप इनके किस काम का , ? पर जब यही बात उन्होंने मेरी बगल में मूंगफली खाती महीला, चिप्स चबाती लडकी व जूस पिते लड़के से कही।  तो मैंने उन्हें गौर से देखा। बच्चें से मासूम चेहरे पर जिन्दगी के एक बड़े हिस्सें का अनुभव लिए वो मेरी तरफ देख कर मुस्कूरा दिए। मुझे ही नही बस में सवार हर एक मुसाफिर को उनका यह व्यवहार असामन्य ही लगा होगा कि कौन दूसरों से कचरा मांग- मांग कर इस तरह थैली में इक्कठा कर के सफर भर ढोता है और उतर कर सही जगह डाल देता है। मुझे अपना कचरा उन्हें देने में शर्म आने लगी तो मैं उठकर उनके पास जा बैठा। अपना कचरा उनकी थैली में डाल

पगडंडियां

शाम के धीमे अँधेरें में दूर से आती गाडियाँ रेंगती हुई सी लग रही थी। पी पी की आवाजों के बीच ट्रक में चलते राजा हिन्दुस्तानी के गाने  " परदेशी परदेश जाना नही" और रक्शें में बजते " हमारी गल्ली आना नही " से लग रहा था की यह सड़क उतर भारत के किसी मझले शहर की है। पता नही कौन है जो किसी को परदेश जाने से रोक रहा है? और कौन है जो किसी को गली में आने से भी मना कर रहा है?             यह सड़क शहर से ढ़ेर सारे गाँवों को जोडती है  और कई सपनों को रोज गाँव से शहर ढोने का काम भी करती है बेहरहाल बात सपने और सड़क की नही है। बात है उस पगड़ड़ी की जिसके छोर से मानव ने चलना शुरू किया था। सभ्यता के उषाकाल से ही यह मानव के द्वारा बानायी और बिगाड़ी जाती रही है। हर किसी ने अपने सफ़र का कुछ हिस्सा इन पगड़ड़ियों से गुजरते हुए काटा होगा। जंगल से शहरों तक की तरक्की करने वालों ने इन्हे लीपपोत कर चौडे राजमार्गों में तबदिल कर दिया। लेकिन जब आज भी जाता हूं उस तालाब के पास तो पाता हूं की गोर चांदनी में सियारों का एक झुंड रोज आता है उस तालाब तक । गुफ्फाओं और कंदराओं से निकलने वाली छोटी-छोटी पगडंडियां जंग

My first English poem.

चित्र
               काव्य की रचना कभी भी किसी भाषा में नही हुई। काव्य तो भावों की अभिव्यक्ति मात्र है। काव्य हमेशा वहीँ रचा जाता है जहाँ पर भाष अप्रभावी हो जाती है। अर्थात भाव ह्रदय की असीम गहराई में प्रस्फुटित होते है और जब वो अप्रस्फुटित रहे जाते है तब ही काव्य बनता है। काव्य का अर्थ चंद तुकबंद कविताएँ नही है मैं उसे परिभाषित नही कर सकता पर इतना कह सकता हूँ की वेदना और प्रेम की असीम स्थिती में निकली एक आह! भी काव्यमयी हो सकती है। बस शर्त है की उस साँस को भी उसी तरह ग्रहण किया जाए जिस तरह से उसे छोडा गया।इसीलिए कालीदास के हजारों साल बाद भी कोई दुसरा कालीदास नही हुआ। अंग्रेजी मुझे अच्छी नही आती पर लायक लिख सका हूँ। आप चाहो तो इसे कविता कह सकते हो अन्यथा कुछ तो है ही- ईश्वर गुर्जर     --  Is it love.  -- क्या यह प्यार है--                             I think that you think about me.  And you think that I think about you. Do you know that When you cry, then I also cry. When you laugh then I also laugh . I see you, everywhere. But do I see you everywhere? You know