" ऐ जिन्दगी मेरी....
पीछवाड़े के नीम की झुकी टहनियों सी
कच्चें घरों की सुन्नी पड़ी देहलियों सी
सिसकती रातों में हिचकियों सी
ऐ जिन्दगी मेरी, तुम कैसी हो री ?
तुम हो ख्वाबों में नींद प्रियसी जैसी
तुम हो रातों में गहरी चाँदनी जैसी
तुम दर्द के सीने की गर्म साँस सी हो
तुम सदियों से दबे गहरे राज सी हो
तुम हो मौत के माथे पर जुल्फ जैसी
तुम हो बँटे हुए, मेरे मुल्क जैसी
ऐ जिन्दगी मेरी तुम कैसी हो री ?
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