एक याद किस्सा, शान्ति लाल गुप्ता जी

   एक याद किस्सा  -" डॉ.शांतीलाल गुप्ता "

          - दीवाली के एक दिन पहले जयपुर से घर जाने के लिए निकला।
सिंधी कैंप से पाँच रूपये की एक कटिंग चाय खरीद कर रोडवेज बस की सीट पर बैठा ही था की बस चल दी। चाय मैं कैसे छोडता। सो अपनी सीट पर बैठकर चाय पीने लगा। थोडी देर बाद आगे वाली सीट पर बैठे, हाथ में थैली थामे सज्जन ने मुझसे कहा !
" चाय पीने के बाद यह जो कप है , इसे बाहर नही फैंक कर मुझे दे देना।"
मुझे बात कुछ अजीब सी लगी।
सोचा यह कप इनके किस काम का , ?
पर जब यही बात उन्होंने मेरी बगल में मूंगफली खाती महीला, चिप्स चबाती लडकी व जूस पिते लड़के से कही।  तो मैंने उन्हें गौर से देखा।

बच्चें से मासूम चेहरे पर जिन्दगी के एक बड़े हिस्सें का अनुभव लिए वो मेरी तरफ देख कर मुस्कूरा दिए।
मुझे ही नही बस में सवार हर एक मुसाफिर को उनका यह व्यवहार असामन्य ही लगा होगा कि कौन दूसरों से कचरा मांग- मांग कर इस तरह थैली में इक्कठा कर के सफर भर ढोता है और उतर कर सही जगह डाल देता है।

मुझे अपना कचरा उन्हें देने में शर्म आने लगी तो मैं उठकर उनके पास जा बैठा। अपना कचरा उनकी थैली में डाल कर मैं उनसे बातें करने लगा ।
बातों से पता चला की वो  - डॉ. शान्तिलाल गुप्ता है और थोडे दिनों पहले ही सर्जन के पद से रिटायर हए है।  टोंक के रहने वाले डॉ. साहब ने जिन्दगी को इसी तरह जीना सीखा है। हर सफर में उनके साथ और कोई हो ना हो यह कचरे की थैली हम सफर जरूर होती है। जिसमें वो पूरे सफर का कचरा मांग- मांग कर डालते है।
सफर खत्म होने पर कचरा सही जगह पर डाल देते है। यह उनके जीवन की साधना है।
मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ ।

अजमेर पहुँचने से पहले वो मुझसे कहते गए - ' देखो! सफाई जिन्दगी और समाज में पवित्रता लाती है!" संकल्प लो की कभी अपना कचरा किसी और के पाले में नही फेंकोगें"...
मैं अब तक संकल्प को दोहरा रहा हूँ।.....

रचनाकार- ईश्वर गुर्जर ( भीलवाडा )
M.-9680906026

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