डार्विन का विद्यार्थी जीवन

 
अद्भुत था डार्विन का विद्यार्थी जीवन-

                                                            

                   विश्व को आधुनिक तार्किक विचारधारा देने वाले व्यक्तियों में चार्ल्स डार्विन का नाम प्रमुख है। विकासवाद का सिद्धान्त देकर चार्ल्स डार्विन ने सजीव सृष्टि को समझने की जो दृष्टि दी उसी के बल पर आज विज्ञान जीवन को प्रयोगशाला में रचने के समीप पहुँच रहा है। विश्व  भर से विकास के पक्ष में साक्ष एकत्रित कर, उनका विश्लेषण कर, उन्हें प्राकृतिक वरण के सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत कर, चार्ल्स डार्विन ने जिस अद्भुत लगन व क्षमता का परिचय दिया उसकी झांकी उनके बचपन में देखी जा सकती है। इन दिनों संपूर्ण विश्व  में चार्ल्स डार्विन की 200 वीं जयन्ती श्रद्धा के साथ मनाई जा रही  है।
                   चार्ल्स डार्विन का जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैण्ड के श्रूसबरी कस्बे में हुआ था। यदि प्रचलित कहावत होनहार विरवान के होत चीकने पात को चार्ल्स डार्विन पर लागू किया जाय तो लगेगा कि चार्ल्स डार्विन बचपन में बहुत ही सुषील,मेधावी तथा परिवार के दुलारे रहे होंगे। मगर सत्य ठीक इसके विपरीत दिखाई देता है। इनके बचपन की छविं शरारती, फूहड़, आलसी तथा पढ़ाई में पिछड़े बालक की होने के कारण इनसे किसी की भी यह अपेक्षा नहीं रही थी कि भविष्य में चार्ल्स डार्विन एक युग प्रवर्तक बने। इसका यह अर्थ नहीं है कि चार्ल्स डार्विन के महान बनने में उनके बचपन का कोई योगदान नहीं था। जिन कार्यों ने इनको महान बनाया उसकी मजबूत नींव इनके बचपन में ही रखी गई थी। शिक्षा के संकीर्ण मानदण्डों पर खरे नहीं उतरने के कारण चार्ल्स डार्विन परिवार तथा शिक्षकों की नजरों में फिसड्डी ही बने रहें।
           चार्ल्स डार्विन को बचपन में घर में चार्ली व बॉबी कह कर पुकारा जाता था। चार्ल्स डार्विन बचपन में शरारती होने के कारण घर वालों के लिए सिरदर्द बने रहते थे। उनकी छवि ऐसी बन गई थी कि घर में कोई भी गड़बड़ होती नाम उन्हीं का आता था। प्रारम्भ में इन्हें पढ़ाने की जिम्मेदारी इनकी बहिन करोलिन को सौंपी गई मगर चार्ल्स डार्विन ने पढ़़ने में मन नहीं लगाया तो पास की पाठषाला में भर्ती कराया गया। शर्मिले चार्ल्स डार्विन कक्षा में सुस्त मगर बाहर मैदान में चुस्त नजर आते थे। तेज दौड़ने तथा दूर तक पत्थर फैंकने की अपनी क्षमता की ओर अन्य बच्चों का ध्यान आकर्षित करने को सदा लालायित रहते थे।
चार्ल्स डार्विन से गैस डार्विन
सरल स्वभाव के कारण बचपन में चार्ल्स डार्विन मित्रों की कूट चालों का षिकार भी बन जाया करते थे। एक बार इनके एक मित्र ने इन्हें बताया कि कोई एक विषेष प्रकार का टोप पहनकर दुकान में जावे तथा टोप को दुकानदार के सम्मान में विषेष अन्दाज में उतारा जावे तो दुकानदार समान के पैसे नहीं लेता। चार्ल्स डार्विन उस मित्र की बात को सच मान कर एक बैकरी में गए तथा दुकानदार के सम्मान में टोप उतारा तथा एक केक उठाकर और बिना पैसे चुकाए दुकान के बाहर हो गए। दुकानदार उनकी यह हरकत देख उन्हें पकड़ने दौड़ा। चार्ल्स डार्विन ने तुरन्त केक को फेंका और तेजी से दौड़कर दुकानदार की गिरफ्त से अपने को बचाया।
         चार्ल्स डार्विन को बचपन से ही सैर सपाटे करने का शौक था। उनके बचपन के अधिकांश ग्रीष्मावकाश उत्तरी वेल्स में बीते। यह क्षेत्र प्राकृतिक दृष्टि से बहुत समृद्ध था। चार्ल्स डार्विन गर्मियों में दिन भर प्राकृतिक प्रादर्षो को एकत्रित करने में बीताते। उत्तरी वेल्स ने असीम प्राकृतिक संपदा से चार्ल्स डार्विन का  परिचय कराया जो आगे घनिष्ट होता चला गया। चार्ल्स डार्विन का घर प्रकृति की गोद में स्थित था। घर के साथ सटा छोटा मगर सुन्दर बगीचा था। बगीचे में उपलब्ध पादप विविधता ने चार्ल्स डार्विन को बहुत प्रभावित किया था। घर के अंदर रहने के बजाय बगीचे में रहना उन्हें अच्छा लगता था। बगीचे के कुंए पर चलते रहट की खट खट आवाज उन्हें मधुर संगीत का सुख देती थी। खनिज, कीट, सिक्के, डाक टिकिट तथा ऐसी ही अन्य वस्तुओ का संग्रह वे बचपन में ही करने लगे थे। कुत्तों के साथ खेलना तथा घर के पिछवाड़े में बहने वाली नदी में मछलियां पकड़ना उन्हें सुहाता था। परेशानी तो औपचारिक पढ़ाई को लेकर थी।
                नौ वर्ष की आयु में चार्ल्स डार्विन को श्रुसबरी के एक आवासीय विद्यालय में भर्ती कराया गया। वह विद्यालय चार्ल्स डार्विन के घर के पीछे बहने वाली नदी के पार ही था। अतः सप्ताह में कई बार घर आने का अवसर चार्ल्स डार्विन को मिल जाता था। विद्यालय में चार्ल्स डार्विन को प्राचीन इतिहास, ग्रीक आदि शास्त्रीय विषय पढ़ने पड़ते थे जो उन्हें अच्छे नहीं लगते। एक दिन रटते दूसरे दिन भूल जाते। पाठ्क्रम में सम्मिलित ऐतिहासिक नाटक तथा प्रसिद्ध कवियों की कविताएं पढने में आनंद आता था।
                चार्ल्स डार्विन को प्रकृति के अध्ययन के लिए तैयार करने की शिक्षा  कक्षा कक्ष के बाहर ही प्राप्त हुई। चार्ल्स डार्विन के जीवन के अध्येताओं का मानना है कि उनके जीवन की कई ऐसी घटनाएं हैं जो उन्हे प्राकृतिक विज्ञान की ओर खींचती चली गई। चार्ल्स डार्विन को बचपन से ही सैर सपाटे करने का शौक था। उनके बचपन के अधिकांश ग्रीष्मावकाश उत्तरी वेल्स में बीते। यह क्षेत्र प्राकृतिक दृष्टि से बहुत समृद्ध था। चार्ल्स डार्विन गर्मियों में दिन भर प्राकृतिक प्रादर्षो को एकत्रित करने में बीताते। उत्तरी वेल्स ने असीम  प्राकृतिक संपदा से चार्ल्स डार्विन का  परिचय कराया जो आगे घनिष्ट होता चला गया।
               चार्ल्स डार्विन को औपचारिक शिक्षा की पुस्तकें अच्छी नहीं लगती हो मगर अनौपचारिक रूप से मिली पुस्तक वंडर्स ऑफ दी वल्र्ड ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। इस पुस्तक ने ही उन्हें विश्व  के विभिन्न भागों से परिचित कराया तथा उन्हें देखने की लालसा पैदा की। रसायनशास्त्र  विषय ने चार्ल्स डार्विन को बहुत आकर्षित किया। इसका कारण भी कक्षा कक्ष नहीं होकर उनके जीवन के अनौपचारिक अनुभव ही थे। 1822 में उनके बड़े भाई एराम्मस ने घर के पिछवाडे़ं में एक रसायनिक प्रयोगशाला स्थापित की थी। इस प्रयोगशाला ने चार्ल्स डार्विन को बहुत आकर्षित किया। वे अपने भाई के सहायक रूप में प्रयोगशाला में काम करने लगे। दोनों भाई देर रात तक प्रयोगशाला में काम करते हुए विभिन्न योगिक बनाते रहते थे। इनके परिवार तथा स्कूल के सहपाठियों को यह बात बिल्कुल पसन्द नहीं थी। साथी तो इन्हें चार्ल्स डार्विन की बजाय गैस डार्विन  कहने लगे थे। इनकी बहिन करोलिन बराबर चेतावनी देती रहती थी कि एक दिन विस्फोट कर घर को उड़ा दोगें। विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने भी डांटा तथा बेकार के प्रयोगों पर समय नष्ट नहीं करने का आदेश दिया था।
                घर में बनी रसायन प्रयोगशाला में काम करने से चार्ल्स डार्विन के प्रयोगात्मक कौशल का विकास हुआ जो आगे जाकर मददगार बना। औपचारिक शिक्षा में कोई प्रगति नहीं देख कर चार्ल्स डार्विन के पिता ने उनको स्कूल से निकाल लिया। पिता का मानना था कि चार्ल्स डार्विन को कुत्तों, पक्षियों चूहों के अतिरिक्त किसी की परवाह नहीं थी। वह स्वयं के साथ साथ परिवार की इज्जत भी खराब करने पर तुले थे। चार्ल्स डार्विन को स्कूल से निकाले जाने पर शिक्षकों ने भी कोई बचाव नहीं किया क्योंकि स्कूल में चार्ल्स डार्विन की गिनती अच्छे विद्यार्थियों में नहीं थी।

                           चिकित्सक बनने की राह पर
                      चार्ल्स डार्विन के परिवार में डाक्टर बनने की परम्परा के चलते उनके पिता ने सोचा कि और कुछ करने में असमर्थ रहा चार्ल्स डार्विन  डाक्टर तो बन ही जाएगा। चार्ल्स डार्विन को 1825 में स्कॉटलैण्ड में एडिनबर्ग विश्व विद्यालय में मेडीसिन के अध्ययन हेतु भर्ती करा दिया गया। ग्रीष्मावकाश में चार्ल्स डार्विन अपने पिता के सहायक के रूप में उनके चिकित्सालय में गरीबों, बच्चों तथा महिलाओं का ईलाज करने लगे।
                    केब्रिज विश्व  विद्यालय से चिकित्साशा़स्त्र का अध्ययन कर रहे चार्ल्स डार्विन के बडे़ भाई कक्षाएं पूरी हो जाने के बाद परीक्षा की तैयारी करने एडिनबर्ग आगए थे। विश्वविद्यलय के पास ही एक कमरे में दोनों साथ साथ रहने लगे। यंहा भी उन्हे रसायनशास्त्र के अतिरिक्त किसी विषय में मजा नहीं आ रहा था। कुछ लोगो का मानना है चिकित्साशास्त्र  के प्रयोग करते समय रक्तपात देखकर वितृष्णा वष चार्ल्स डार्विन पढ़ाई छोड़ थी। इस बात में सत्य का अंष हो सकता है मगर यंहा भी मुख्य बात चार्ल्स डार्विन का पढ़ाई में मन नहीं लगना ही था। आगे जाकर अपनी जीवनी में चार्ल्स डार्विन स्वयं ने कहा है कि पिता ने उनमें ऐसा क्या पाया जिससे वह उन्हें एक सफल चिकित्सक के रूप में देखने लगे थे।
                  चार्ल्स डार्विन की अनौपचारिक अध्ययन यात्रा एडिनबर्ग में भी जारी रही। यहां वे काले गुलाम जोहन एडमनस्टोन के सम्पर्क में आए। एडमनस्टोन मृत जन्तुओं की खाल में रसायन भर कर उन्हें सजाने वाले प्रादर्श में बदलने का काम करता था। चार्ल्स डार्विन ने एडमनस्टोन से टेक्सीडर्मी सीखने के साथ ही दक्षिणी अमेरिका की प्राकृतिक संपदा के विषय में वास्ततिक जानकारी ली जो उनकी दक्षिण अमेरिका की यात्रा के समय बहुत काम आई। एडिनबर्ग में उनको गिलबर्ट वाइट की पुस्तक दी नेचुरल हिस्ट्री ऑफ सेलबोर्ने पढ़ने को मिली। प्रथम वर्ष की पढ़ाई पूर्ण होने पर ग्रीष्मावकाश में चार्ल्स डार्विन फिर उत्तरी वेल्स पहुँच गए तथा गिलबर्ट वाइट की पुस्तक के अनुसार प्रकृति का अध्ययन करने के साथ ही अपनी स्वयं की फील्डबुक तैयार करना प्रारम्भ कर दिया।
                    दूसरे वर्ष का अध्ययन करते वक्त एडिनबर्ग में चार्ल्स डार्विन को रोकने टोकने वाला कोई नहीं था। उनके बड़े भाई एनाटामी का अध्ययन करने लंदन चले गए थे। अब चार्ल्स डार्विन का अधिकांश समय एडिनबर्ग के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में गुजरने लगा। डार्विन ने म्यूजियम के क्यूरेटर विक्टर मेकगिल्लीवरी से घनिष्ठता कर ली थी तथा उनसे वनस्तति विज्ञान, प्राणिविज्ञान तथा  प्रकृति अध्ययन की विधियों के विषय में जानकारी प्राप्त करने लगे। यह ज्ञान भी आगे जा कर लाभकारी हुआ। इसके साथ ही चार्ल्स डार्विन एकडनबर्ग की प्लीनियन सोसाइटी के सदस्य बन गए। यहां उन्हें अध्ययन को विधि पूर्वक लिखने तथा प्रस्तुत करने का अनुभव हुआ। चार्ल्स डार्विन ने अपना प्रथम शोध पत्र 27 मार्च 1827 को इसी प्लीनियन सोसाइटी के सम्मुख प्रस्तुत किया था।
विकासवाद से परिचय
                     एडिनबर्ग में द्वितीय वर्ष में अध्ययन करते हुए ही चार्ल्स डार्विन ने प्राणीशास्त्र  के प्रोफेसर रोबर्ट ग्रांट के साथ घनिष्टता बढ़ाली। चार्ल्स डार्विन उनके साथ अधिक से अधिक समय बीताते तथा समुंद्री जीवों के विषय में चर्चा किया करते। रोबर्ट ग्रांट ने ही लैमार्क के विकासवाद संबन्धी विचारों से चार्ल्स डार्विन को परिचित कराया। ग्रांट से चार्ल्स डार्विन ने संमुद्री जीवों को एकत्रित कर उनका अवलोकन व विच्छेदन करने के गुर सीखे।
         एडिनबर्ग में चिकित्साशास्त्र  का अध्ययन करते हुए भी चार्ल्स डार्विन ने कॉलेज की शिक्षा में कोई रूचि प्रदर्शित नहीं की। यह बात उनके पिता तक पहुँच गई तो वे बड़े परेशान हुए। एप्रिल 1827 में चार्ल्स डार्विन चिकित्साशास्त्र  की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर श्रुसबरी अपने घर लौट आए। चार्ल्स डार्विन के पिता को इनकी अन्य गतिविधियों के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं था। वे यह मानते थे आलसीपन के कारण ही चार्ल्स डार्विन ठीक से अध्ययन नहीं कर पा रहा था। वे इस बात से चिन्तित थे कि कंही चार्ल्स डार्विन एक आलसी व्यक्ति के रूप ही अपनी पूरी जिंदगी नहीं निकाल दे। अतः उनके पिता ने उन्हें पादरी बनाने का निर्णय किया।
पादरी बनने की तैयारी
                उन्नीसवीं षताब्दी के प्रारम्भ में पादरी बनना एक सम्मान जनक व्यवसाय माना जाता था। चार्ल्स डार्विन को भी पिता का यह प्रस्ताव अच्छा लगा क्योंकि पादरी के रूप में वह प्रकृति का अध्ययन आसानी से कर पाएगे। उन दिनों पादरी धार्मिक कायों के साथ प्रकृति का अध्ययन भी किया करते थे।
जनवरी 1828 में चार्ल्स डार्विन ने केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के क्राइस्ट कॉलेज में प्रवेश ले लिया। यहां भी चार्ल्स डार्विन का मन पढ़ाई मे नहीं लगा। कुछ अनिवार्य विषय की कक्षाओ में बैठे मगर जल्दी ही ऊब गए और कक्षाओं में जाना बंद कर दिया। जंगलो में घूम घूम कर जीव जन्तु पकड़ने का क्रम अभी भी जारी था। शेष समय ताश खेलने, शेक्सपीयर के नाटक पढ़कर या यारदोस्तों के साथ पार्टियां करने में बीतने लगा।
स्त्री मित्र से बढ़कर गुबरिले
                        यहां एक महत्वपूर्ण घटना यह हुई कि बहन करोलिना की सहेली फेनी ओवेन में डार्विन रुचि लेने लगे। वे फेनी से मिलने उसके घर भी जाने लगे। केंब्रिज में पढ़ते हुए उनकी रूची कीटशास्त्र में होगई। वे गुबरीले पकडने तथा उनका वर्गीकरण करने में भी बहुत समय देने लगे। फेनी को यह पसन्द नहीं था। द्वितीय वर्ष के शीतावकाश की बात है। फेनी चाहती थी कि चार्ल्स डार्विन छुट्टियों में श्रूसबरी आवे। मगर चार्ल्स डार्विन ने फेनी से अधिक महत्व गुबरिलों को दिया चार्ल्स डार्विन और फेनी की यह दोस्ती यहीं टूट गई।
केंब्रिज में ही चार्ल्स डार्विन का परिचय उस समय के प्रख्यात प्रकृतिविद प्रोफेसर जॉन हेंसले से हुआ। प्रोफेसर हेंसले ने चार्ल्स डार्विन की प्रतिभा को पहचाना। उन्होने चार्ल्स डार्विन में एक भावी प्रकृतिविज्ञ को देखा तथा आगे बढ़ाने में सहयोग देने लगे। इसके बाद तो चार्ल्स डार्विन अधिककांश समय प्रोफसर हेंसले के साथ ही दिखाई देने लगे। कहते है कि उन दिनों चार्ल्स डार्विन का एक परिचय, प्रोफेसर हेंसले के साथ रहने वाला आदमी हो गया था। प्रोफेसर हेंसले के साथ रहने से चार्ल्स डार्विन में आत्म विश्वास पैदा होने लगा था। इसी समय चार्ल्स डार्विन का परिचय भूगर्भ शास्त्री प्रोफेसर अडम सेजविक से भी हुआ। इनसे प्राप्त भूगर्भ विज्ञान का ज्ञान आगे जाकर लाभप्रद सिद्ध हुआ।
                                         केब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन के तीसरे वर्ष में चार्ल्स डार्विन को विशिष्ट पुस्तकें पढ़ने को मिली जिन्होंने उनके भावी जीवन को प्रभावित किया। एक पुस्तक थी सर जॉहन हरशेल की प्रिलीमरी डिसकार्स ऑन दी स्टडी ऑफ नेचुरल फिलोसोफी। इस पुस्तक से चार्ल्स डार्विन को यह समझ आया कि प्रकृति के अनुसंधान से अनंत आश्चर्य खोजे जा सकते हैं। दूसरी पुस्तक अलेक्जेण्डर वोन हमबोल्ट द्वारा अमेरिका के विषुव क्षेत्र की, 1799 से 1804 तक, की गई यात्रा का संस्मरणात्मक वर्णन के सात भाग थे। इस पुस्तक ने चार्ल्स डार्विन की कल्पना को पंख दिए और वे दक्षिणी अमेरिका के वर्षा वनों का अध्ययन करने के सपने देखने लगे। इन सब घटनाओं ने चार्ल्स डार्विन को पूर्ण प्रकृतिविद तो नहीं पर एक अच्छा प्रकृति अध्येता बना दिया था। 22 वर्ष की उम्र में चार्ल्स डार्विन ने केब्रिज का पादरी बनने का पाठ्यक्रम सफलता पूर्वक पूरा कर लिया मगर अभी भी प्रकृतिविद बनने का जुनून उनके सिर पर सवार था। इसी जुनून ने उन्हें विश्व  के  महान वैज्ञानिको की पंक्ति में ला खड़ा किया।
जहां चाहा वहां राह
               जहां चाहा वंहां राह की बात चार्ल्स डार्विन के जीवन पर पूर्णतः लागू होती है। चार्ल्स डार्विन दक्षिणी अमेरिका के वर्षा वनों का अध्ययन करने के सपने देखना प्रारम्भ ही किया था कि इससे भी बड़ा अवसर उनको मिल गया। 1831 में उन्हें जलपोत एच.एम.एस.बीगल पर प्रकृतिविज्ञ के रूप में पाँच वर्ष लम्बी विश्व यात्रा करने को चुन लिया गया। वाटर लू की लड़ाई के साथ ही ब्रिटेन समुद्र का एकमात्र शासक बन गया था। तब समुद्रतट सम्बंधी नक्से तैयार कराने की आवश्यकता अनुभव की गई। 1817 में इसके लिए नया सर्वेक्षण विभाग  तथा कई नए जहाज बनवाए गए। इनमें ही एक था एच.एम.एस.बीगल।
                   बीगल के दूसरे सर्वेक्षण की कमान केप्टैन रोबर्ट फिट्जरॉय को सौंपी गई थी। रोबर्ट की उम्र 26 वर्ष थी तथा उसे एक युवा सुसंस्कृत व्यक्ति की तलाश थी जो लम्बी यात्रा के एकेलेपन को कम करने में सहायक हो सके। यदि वह व्यक्ति प्रकृतिविज्ञ हो तो सोने में सुहागा वाली बात थी। जहाज में क्षेत्र का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने की सभी सामग्री तैयार थी। आवश्यकता लगन वाले उत्साही व्यक्ति की थी। प्रोफेसर हेंसले ने न केवल चार्ल्स डार्विन के नाम का आमंत्रण पत्र मंगवाया अपितु चार्ल्स डार्विन को यह भी समझाया कि एच.एम.एस.बीगल के व्यवस्थापको को जैसे व्यक्ति की तलाश थी उसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त पात्र चार्ल्स डार्विन ही था। चार्ल्स डार्विन ने वह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। पांच वर्षीय यात्रा से प्रकृति के अनुभवों का जो खजाना लेकर आया, उसने चार्ल्स डार्विन को तो महान बनाया ही,, दुनियां के लिए भी सोच का एक नया द्वार खुल गया।

- विष्णुप्रसाद चतुर्वेदी  के ब्लॉग से.....!

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