होमो सेपियंस कि भाषा।
सेपियंस की सम्प्रेषण दक्षता सबसे बड़ी खूबी उसकी भाषा का लचीलापन है। हम इतनी भिन्न ध्वनियों के समूह का निर्माण करने में कामयाब रहे है जिससे कि हम जीवन भर गॉसिप कर सके, महाग्रन्थों को रच सके। लचीला होने का मतलब हम एक ही ध्वनि को अन्य कई ध्वनियों के साथ प्रयोग कर अंतहीन संवाद कर सकते है। यानी हमारी भाषा एक ठोस कड़ा नही होकर ध्वनियों कि एक माला है
डॉ हरारी इसके लिए मिसाल देते है कि एक बंदर एक आवाज निकालकर केवल यह कह सकता है कि "भागो शेर आया है" लेकिन एक होमो सेपियंस इस पर घण्टो बतिया सकता है कि मैंने नदी किनारे एक शेर को हिरणों का पीछा करते देखा है , वो हमारी तरफ आ सकता है और उसे कैसे खदेड़ा जाए....इत्यादि इत्यादि। बताने के अलावा वो सम्भावित परिणामो व उपायों की कल्पना भी कर सकता है।
सेपियंस कि इन भाषाई दक्षताओं ने उसे दो काम करने में समर्थ बनाया। पहला गपशप (गॉसिप) करना और दूसरा कल्पनाओं की असीमित उड़ान भरना। गॉसिप करने की खूबी ने होमो सेपियंस को एक गजब की सामाजिक समायोजन की ताकत दी। अब वो समूह में लोगो की निंदा कर सकता था, बोलकर सहयोग व साथ कि गुजारिश कर सकता था और चालाकी से अपने भावों को व्यक्त कर सकता था। गपे लड़ाने की उसकी इसी खूबी ने उसे सबसे अधिक सामाजिक प्राणी बनाया।
संज्ञानात्मक क्रांति ( आकस्मिक जैविक उत्परिवर्तन जिससे कि सेपियंस अन्य जीवो कि अपेक्षा ज्यादा तेजी से सीखने लगा, बेहतर सम्प्रेषण व सहयोग करने लगा) ने उसे कल्पना करने कि असीमित ताकत दी। कोई भी दूसरा जीव काल्पनिक दुनिया मे नही जीता सिवाय सेपियंस के। हिरण कभी इस बात के लिए वर्तमान की हरी घास का त्याग नही करेंगे कि मरने के बाद उन्हें स्वर्ग मिलेगा। और न बन्दर नरक के डर से दूसरे असहाय बंदरो में केले बांटेगे। केवल सेपियंस ही वर्तमान के बरक्स काल्पनिक दुनिया मे दोहरी जिंदगी जीता है। कल्पना करने की शक्ति ने हमे सामुहिक मिथक गढ़ने के लिए तैयार किया। जिससे कि सामुहिक रूप से बहकाया या सहयोग हासिल किया जा सके।
काल्पनिक शक्ति के बल बुते ही हम सामुहिक मिथकों ( धर्म , ईश्वर, पैसा, राष्ट्र, मानवाधिकार, समानता और अन्य मानवीय व नैतिक मूल्यों ) का निर्माण कर पाये है। ताकि हम ज्यादा से ज्यादा सहयोग कर सके। संगठित हो सके।
सेपियंस दोहरी वास्तविकता में जी रहा है। एक वस्तुनिष्ठ वास्तविकता (objective reality ) है जिसमे जंगल, नदी , वन्य जीव और भौतिक वस्तुए शामिल है। दूसरी कल्पित वास्तविकता (fictional reality) है जिसमे देवताओं, राष्ट्रों, धर्मों व मानवीय मूल्यों की सत्ता है। विकास क्रम में धीरे-धीरे कल्पित वास्तविकता मजबूत होती गई। और आज वस्तुनिष्ठ वास्तविकता का अस्तित्व कल्पित वास्तविकताओं पर निर्भर करता है। आज किसी भी क्षेत्र में समृद्धि और स्थायित्व उस क्षेत्र कि भू राजनैतिक विचारधारा व धार्मिक स्थिरता पर निर्भर करती है।
डॉ. हरारी ने अपनी किताब "सेपियंस " में मनुष्यों और अन्य जीवों के बीच पैदा हुई खाई और हमारे श्रेष्ठताबोध कि अनेको वजह बताई है। उनमें से एक हमारी सम्प्रेषण दक्षता है जिसकी एक बुनियादी खूबी हमारी भाषा का लचीलापन है। यू ही नही हमने मामूली वानरो से लेकर दुनिया के शासक बनने का सफर तय किया।
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