ए डायरी ऑफ यंग गर्ल।


जैसे आप हो? जैसा आपने महसूस किया ? जो सोचा ? वैसा का वैसा खुद को व्यक्त कर देना, किसी से बात करते वक्त या डायरी लिखते समय मन खोलकर रख देना उतना आसान नही होता जितना लगता है। हम सब जब भी कुछ लिखने का प्रयास करते है खुद के साथ भी पूरी  ईमानदारी से पेश नही आते। यानी हम अपने मनोभावों को पूरी तरह से व्यक्त नही कर पाते है। यहां तक कि हम एक कागज के सामने भी अपना दिल खुलकर नही रख सकते। उससे भी बहुत सी बातें छुपाते है। उससे भी चालाकियां करते है। और उसे भी चयनात्मक ही बताते है।

पारदर्शी अभिव्यक्ति सबसे मुश्किल है। लोग अक्सर एक पेज भी बिना किसी बनावट के या लागलपेट के नही लिख सकते है! अपने बारे मैं भी नही; और जो लिख दे तो समझो उसका लेखन कौशल संवेदना की दृष्टि में सर्वोच्च है।

अज्ञेय के शब्दों में कह तो भोगने वाले मन और रचना करने वाले मन के मध्य एक अनिवार्य अंतराल होता है। चालाकियों और प्रतीकों की एक खाई होती है । यह अन्तराल जितना कम, यह खाई जितनी उथली होगी। रचना उतनी ही महान बन जाएगी। पश्चिमी साहित्यालोचक टी एस इलियट ने इसे "ऑब्जेक्टिव कोरिलेटिव" कहा है। अर्थात आप जो सोचते और महसूस करते है ठीक उसे व्यक्त नही कर सकते है। आसान भाषा मे कह तो दिल खोलकर रख देना बहुत मुश्किल है। यहां तक कि रोज डायरी लिखने वाले अधिकांश लोग भी ऐसा नही कर पाते है।  ऐसा नही है कि यह गलत है बस आसन नही है।

लेकिन आधुनिक मानव इतिहास के सबसे बुरे दौर(खासकर यहूदियों के सम्बंध में) वर्ष 1943-44 में लिखी गयी 13 साल की यहूदी लड़की एनी फ्रैंक की डायरी पढ़ते समय आपको ऐसा नही लगेगा। भय और त्रासदी के दौर का लेखन। उत्पीड़न और यातनाओं की एक जीवंत कहानी। वो डायरी जिसने सबसे प्रतिकूल वक्त में जिंदा रहने की जिजीविषा को बनाये रखा। दुर्भाग्य से ऐनी फ्रैंक कि यातना शिविर में 14 साल की उम्र में मौत हो गयी। लेकिन उसने अपने जीवन के समाप्त होने तक जो डायरी लिखी वो लेखन कौशल में पारदर्शिता की एक मिसाल है।

अपनी डायरी 'किटी' को उसने सब कुछ बताया क्योंकि उसका मानना है कि "कागज में इंसानों से ज्यादा धीरज होता है"  एक 13-14 साल की लड़की अपनी सहेलियों के बारे में क्या सोचती है? किससे उसको ईर्ष्या , चिढ़ है ? कौन ज्यादा घमंडी और आत्ममुग्ध है? माँ के बुरे व्यवहार पर वो क्या सोचती है? बड़े लोग किस तरह मामूली बातों को ईगो से जोड़कर लड़ते है? वो लड़को के बारे में क्या सोचती है?  यहूदियों के उत्पीड़न और तत्कालीन समाज के झकडने भरे माहौल का चित्रण। सब कुछ। आप उसे पढ़कर ऐसे जानेंगे जैसे आप उससे खूब परिचित है।

'दे डायरी ऑफ ए यंग गर्ल' भोगा हुआ यथार्थ है। न कि सोचा हुआ। अपने सीमित स्वाध्याय में मैने इससे ज्यादा पारदर्शी कुछ नही पढ़ा। अगर आत्मा जैसा कुछ होता है तो वो इस डायरी में उड़ेल दी गयी है। इसकी अपनी साहित्यिक सीमाए है कही पर यह रोजमर्रा का विवरण बनकर रह जाती है तो कही पर बातों का दोहराव होने लगता है। लेकिन संवेदना की दृष्टि से इसकी दूसरी मिसाल डायरी या संस्मरण लेखन में दूसरी नही मिलती।

एक बच्चा ही इतनी मासूमियत से लिख सकता है।

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