जीवन
जब भी कोई बहुत जल्दी गुजरता है तो उसका जीवन बहुत छोटा जान पड़ता है। किंचित से अधिक पल होते है जो मष्तिष्क में उसकी यादाश्त बनकर कौंधते है। और कुछ नही। अकस्मात के घटित होने के अपने रंज है। अभी-अभी तो सुनने लगे थे उसके बारे में । कितना कम जिया? कितना जीने को पीछे छोड़ गया? लोग मामूली चीजो को कितना ज्यादा महत्व देते है ?? की उनके उस तरह से न होने पर जिंदगी महत्वहीन सी लगने लगती है । जबकि वो तो कुछ भी नही था। जो महसूस किया , जो देखा, जो जिया या जो लोगो से सुना। अभी तो कितने किस्से बनने थे ?? कितने तूफान और कितनी बहारे जिंदगी में आनी बाकी थी? कितना रोमांच शेष रह गया था?? विज्ञान के कितने अविष्कार देखने बाकी थे ? कितनी किताबे है जो लिखी जानी बाकी थी ; कि जिनको पढ़ना अब बाकी रहेगा और कितनी जगह ऐसी है जिनको देखे बिना दुनिया छोड़ देना बेमानी माना जाता है। सही है कि जिंदगी कभी-कभी बर्दाश्त नही होती। यह भी सही है कि कभी-कभी जीने के मकसद नजर नही आते फिर भी मानव इतिहास में एक जीवनकाल की अवधि बहुत मामूली क्षण होता है। और एक जीवन मे 5 -10 गलतियां, 5 -10 नाकामयाबिया, 5- 10 कामयाबियां और 5 -10 साल बहुत मामूली होते है। जीवन इनसे पूर्ण-अपूर्ण नही बनता। इनका महत्व है लेकिन कोई बहुत महत्व नही है। आपका जीवन कितना भी गौरवमय या कितना भी अभावग्रस्त क्यों न हो? वो एक 1000 साल के इतिहास में कोई महत्व नही रखता । आप दौर-ए-जमाना के सिकन्दर रहे हो या कलंदर उससे कोई फर्क नही पड़ता। यक़ीनन आपसे अच्छा , अधिक संतोषपूर्ण और कुदरतीजीवन तो उसे चरवाहा ने ही जिया होगा जिसके मवेशी ही उसका मुल्क और मुकाम रहे। जिसके क़बीले ने कहर और बहारों के दिन देखें होंगे। जिनके सिरों पर आसमानों के सिवाय किसी के साये नही थे। फिर भी गाते - गुनगुनाते उन्होंने शताब्दियों का जीवन जिया। और हम है जो वर्तमान को भविष्य के हाथों गला घोंटने दे रहे है।
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