एस रामानुजन

मेरे लिए एक समीकरण का कोई मतलब नहीं है जब तक कि वो भगवान के विचार को व्यक्त नहीं करता।- एस रामानुजन ( The Man who knew infinity)

हम अन्तता के मात्र खोजकर्ता है, पूर्णता कि खोज में। हम इन सूत्रों का आविष्कार नहीं करते, वो पहले से ही मौजूद है। और इंतजार मे रहते है बहुत उज्जवल दिमाग और अंतः प्रज्ञा के। जैसे- रामानुजन।- ब्रिटिश गणितज्ञ हार्डी

वो जो साबित नहीं हुआ लेकिन वो है। वो जो घटित नहीं हुआ किन्तु मौजूद है। वो सूत्र/प्रमेय जो हल नहीं किया गया परन्तु उसका अस्तित्व है। बस देखने के लिए रामानुज जैसी अंत: प्रज्ञा होनी चाहीए।
 हार्डी जैसे तर्कवादी किसी ऐसे सूत्र या विचार के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते जिसे वो साबित नहीं कर सकते। वो हर उस विचार को नकारते है जिसका मूर्त और अमूर्त साक्ष्य मौजूद नहीं है। लेकिन रामानुजन को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वो साबित किया जा सकता है या नहीं बस उसे नकारा नहीं जा सकता। कोई भी उसके वजूद से इंकार नहीं कर सकता।  वो उसके होने को पहले महसूस करते है भले ही उसके अस्तित्व को साबित अभी नहीं किया जा सका। यहीं बात रही कि  उन्होंने 3000 से अधिक प्रमेय रचे पहले और उनको साबित करना सीखा बहुत बाद। 

अतः प्रज्ञा को गांधी ने ईश्वरीय आवाज कहा है। जो तर्क से परे है।  उसके लिए अडिग विश्वास कि जरूरत है।  जरा सी भी शंका आपको उससे दूर कर सकती है।

ईश्वर और गणित दोनो अनंत है। थोड़ा साबित है; अधिकांश हमारी समझ से अनसुलझी।  न्यूटन ने ईश्वर को अपने युग के दबावों में अलग अंदाज मे स्वीकार किया। उन्होंने ईश्वर के बारे में कहा कि उसने दुनिया को इतनी तरतीब से बनाया है इतना परफेक्ट बनाया है कि वो जरूर गणितज्ञ रहा होगा" 
लेकिन रामानुजन ने  खुलकर अपने सूत्र और प्रमेय मे उन्हे व्यक्त किया। दो महान गणितज्ञ गणित से ईश्वर को करीब से महसूस करने मे कामयाब रहे। यह और बात है कि वो किसी सूत्र से साबित नहीं होता। पर वो अघटित कि तरह मौजूद है हर जगह। 

कोई भी सबूत नहीं है और ना ही कोई रेखांकित कानून जो ह्रदय (अंत: प्रज्ञा)  के मामलों में परिणाम को निर्धारित कर सकता है।- हार्डी



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