जिंदगी धूप और छाँव की उपमा ही नही

जिंदगी धूप और छाँव की उपमा ही नही।

एक तेरे होने का अहसास भी है।

अब, दुनियां इतनी छोटी भी नहीं की,

उसे मुट्ठी में दबाकर तेरी जेबों में भर दू।

या तारे इतने योग्य नहीं की

उन्हे तेरे लिए जमी पर उतारू


सुनाना तुझे मै 

परीकथाओं की कहानियां भी नही चाहता

नही चाहता मै कि, तू मेरी नज़र से ही देखे 

मुझसा ही सोचे, चले , गुनगुनाएं


वैसे तो रंग-ए-दुनिया में कहने को क्या नही ,

पर जो तुझसे कहना हो तो बस यही की।

   "तेरी मासूम हथेली के स्पर्श से जो मुझमें संजीव हो उठा , उस जीवटता को जीने के लिए तुम्हारा स्वागत है बच्चे।।"

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