मैं ओम ... (एक आवाज )

  

     ओम पुरी (18 अक्टूम्बर 1950 -7 जनवरी 2016)


नसीरूद्दीन शाह ने अपने परम मित्र की मौत पर कुछ यू कह कर गम जताया होगा ।
""कमबख्त जिदंगी और मौत की दौड़ में भी मुझे पीछे छोड़ गया।
मैंने पलक झपकाई और वह मौत के आगोश में चला गया ।""
आम आदमी के आक्रोश की आवाज ओमपुरी ने जीवन को सरलता के साथ जीया और मौत को भी उतनी ही सरलता से गले लगा लिया ।
जब नौकरी छोड कर किस्मत आजमाने Mumbai आये तो लोगो ने कहा इतना बदसुरत व्यक्ति अभिनेता कैसे बन सकता है । ये वो दौर था जब हम सरलता से जटिलता की ओर, हकिकत से कल्पित चमकती दूनिया की ओर, मूल संस्कृति से पाश्चात्य की धूँध की ओर तेजी से बढ रहे थे ।  प्रभावी व काबील अभिनेता की परिभाषा हम ने शक्ल और सुरत देख कर तय की ।  industry के इसी नजरियें को रोबदार आवाज और अदाकारी का अलग ही फन रखने वाले ओमपुरी ने तोडा । जिगर मुरादाबादी का चेहरा भी खुरद्दरा था लेकिन जब वो शायरी करते थे तो खुबसुरत लगने लगते थे कला  इंसान को अंदर से पाक और खुबसुरत बना देती है ।
कहा जाता है की अपने मुश्किल दौर में ओमपुरी ने ढाबे पर बर्तन उठाने का काम तक किया और जो हासिल किया  वो जिन्दगी से लड कर हासिल किया ।  जितना पाया उस पर कभी घुमान नही किया । और जीवन भर आम आदमी की तरह हँसते रहे और हँस कर अपना गम यू छूपाया की अंतिम वक्त तक अपने जख्मों से रिसते दर्द पर पर्दा रखा । जीवन भर खुद्दारी से जीये और जो कहा वही किया ।
मुम्बाई की दूनिया का एक मात्र अभिनेता जिसने २ दर्जन से ज्यादा विदेशी फिल्मों मे काम किया ।
प्रकृति का नियम रहा की  जो सितारा उदय हुआ वो अस्त भी जरूर होगा । 
66 वसंत देख कर हमारे बीच से कूच कर चूँंके ओम ने कहा की " जब तक जिन्दा हूँ। तब तक हर लम्हा जिन्दगी से छीन-छीन कर जीऊँगा ""
उनके किरादारों मे जिन्दा जीवन की संजीव अदाकारी हमारे बीच उन्हें हमेशा जिन्दा रखेंगी ।
उन्हें ससम्मान श्रृदानंजली ।

 ईश्वर--
फिर मिलेंगे एसे ही किसी किस्सें के साथ ।

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